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१२ सूरीश्वरजी और मेझरनामा ।
आपश्री ने पादरा से विहार कर दिया । आपकी यह तो एक प्रवृति ही होगई थी कि मार्ग में यदि दो-चार कोस के फेर में भी किसी भी साधु का नाम सुन लेते तो वहाँ जाकर उनसे अवश्य मिलते थे।
गुजरात में भ्रमन करके आपने ऐसे कोई भी नामाकित साधु को नहीं छोड़ा कि जिससे आप नहीं मिले हों, कारण कि मिले बिना मालूम ही क्या पड़े कि कौन साधु किस विषय के विद्वान् हैं, उनकी प्राचार प्रवृति कैसी है, वे शासन का क्या कार्य कर रहे हैं ? इत्यादि। ___ आप मारवाड़ से गुजरात में गये उस समय दो पात्रे, एक तृपणी, दो चद्दर, एक चोल पट्टा, एवं एक संस्तारिया; बस इतनी ही उपाधि थी। दो वर्ष गुजरात में रहने पर भी आपको गुजरात का रङ्ग नहीं लगा; चाय को तो आपने पास में भी नहीं फटकने दी । हाँ, सुरत में कई लोग विनती करते थे, पर आप कह देते थे कि हम मारवाड़ी साधु हैं और हमको वापिस मारवाड़ जाना भी है। यों तो आपके एकान्तर तर चलता ही था और आप प्रायः पौरसी तो हमेशा करते ही थे। ___जब अहमदाबाद के श्रावकों को खबर हुई कि मुनिश्री पधार रहे हैं तो उन लोगों को बड़ी आशाबंधी कि इस वर्ष मुनिश्री को अहमदाबाद चातुर्मास करवा कर लाभ प्राप्त करेंगे और गुर्जरों को बतला देंगे की मारवाड़ी साधु ऐसे होते हैं ।
आचार्य विजयनेमी सूरिजी उस समय अपनी शिष्य मंडली के