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आदर्श-ज्ञान- द्वितीय खण्ड
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मौन एकादशी होने से सूरिजी ने बहुत आग्रह करके मुनिराज को वहाँ ठहरा दिया ।
पादरा में एक मोहनलाल हेमचन्द भाई वकील सूरिजी का परम भक्त था, उसको द्रव्यानुयोग को अच्छा जान पना था और इस ओर उनकी खूब ही रुचि थी। रात्रि में मुनिजी के पास बैठ कर द्रव्यानुयोग के विषय में कई प्रश्न किये। मुनिश्री के दिये हुए उत्तर से वकील साहब बहुत प्रसन्न हुए, व मुनिश्री की बहुत प्रशंसा की कि साहिब आपने तो जैन शास्त्रों एवं द्रव्यानुयोग का बहुत अच्छा अभ्यास किया है । टला बधा साधुओं ने अमे जोया छे, पण कोई ने पास अमे आ प्रकार जो ज्ञान सांभल्यो नथी, हवे कृपा करो मास दिवस हीं विराजो, अने अमने व्याख्यान सम्भलाओ । पास में बैठे हुए सूरिजी ने भी कहा, तुम्हारा गुजरात में कब आना होता है ? ठहरो, फिर जाना तो है ही ।
मुनि - गुरु महाराज का श्राज्ञापत्र निकाल के बतलाया और कहा कि हमको जाना आवश्यक है, वकील साहब ने कहा, कम से कम दो चार दिन व्याख्यान तो सुनादो, फिर हम आपको याद ही क्या करेंगे । अतः उनका इतना आग्रह देख मुनिराज ने पादरा में ३ दिन की स्थिरता की, एक सार्वजनिक व्याख्यान हुआ, तथा वकील साहब तो रात दिन मुनिश्री की सेवा में रह कर तात्विक ज्ञान सुनकर मस्त बन गये और कहा, साहिब ! आप जहाँ चतुर्मास करें वहाँ से पत्र लिखना ताकि हम वहाँ आकर दो मास ठहर कर आपका व्याख्यान सुन कर अपनी आत्मा को सफल बनावेंगे ? देखो, जैसा अवसर |