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________________ भादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ६०० योगी०-लो मैं तुमको सार्टिफिकेट लिख दूं कि मुनिजी मेरी श्रीज्ञा से एवं मेरे भेजे हुए जा रहे हैं इसको कोई एकल विहारी न समझे । बस वहाँ देर क्या थी, तुरंत कागज मंगवा कर आज्ञा पत्र लिख एक कागज की पट्टी पर चिपका के दे दिया, और कह दिया कि कल ही तुम विहार कर देना। ६१ मुनिश्री का मारवाड़ की ओर विहार मुनिश्री ने गुरु आज्ञा शिरोधार्य कर के इच्छा नहीं होने पर भी वहां से विहार किया, शुक्लतीर्थ तक तीनों महात्मा पहुँचाने को आये । मुनिश्री ने गुरु महाराज को वन्दन कर अर्ज की कि यदि बोर्डिंग की स्थिति थोड़े दिनों में सुधर गई तो चतुर्मास आपके पास आकर करूँगा, यदि वहाँ ठहरने की आवश्यकता हुई तो चतुर्मास के बाद आऊँगा ? पर आप जहाँ पधारें, इस बोर्डिंग को हमेशा याद में रखें। गुरु-अधिष्ठायक आपसे आप करेगा, यह तुम्हारा लगाया हुआ माड़ है, तुम ही इसका सिंचन करो, और इसका फल (यश) भी तुमको ही मिलेगा ! मैं तो एक तुम्हारा सहायक हूँ। ____ मुनिश्री ने दोनों मुनिराजों से कहा कि आप बड़े ही भाग्यशाली हो, जो कि ऐसे महात्मा की सेवा का आपको सुअवसर मिला है, मैं कमनसीब हूँ कि आज गुरु सेवा से अलग हो रहा हूँ । किस का बोर्डिंग और किसके लड़के ? पर क्या करूँ गुरु महाराज की आज्ञा पालन करना मेरा कर्तव्य बन गया है। अब मैं आप से सविनय अर्ज करता हूँ कि जहाँ तक मैं मारवाड़ से न आऊँ वहाँ तक आप गुरु महाराज की सेवा में ही रहना, आपको अनेक
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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