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________________ आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ५८२ शुद्धि पत्र तैयार कर किसी के साथ भेज दूंगा। यदि आपके पास हो तो एक समावायांगली सत्र भी दे दीजिए क्योंकि मैंने उसमें भी कई अशुद्धिएं देखी हैं और मेरी नम्रतापूर्वक अर्ज है कि जिस जिस सूत्र में अशुद्धियाँ रह गई हों, उनका शुद्धिपत्र सूत्रों के साथ जोड़ दिया जावे तो भविष्य की प्रजा के लिए अत्यन्त उपकारी सिद्ध होगा। ____ सागरजी०-मेरी प्रकृति ऐसी ही है, यदि मेरे कहने से श्रा. पकी आत्मा दुःखित हुई हो तो मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ । पन्नवणा सत्र आप खुशी से ले जा सकते हैं और समवायांगजी सूत्र मैं आपको दे देता हूँ, आप शुद्धिपत्र तैयार कर भिजवा देना यदि वास्तव में अशुद्धियाँ होंगी तो में शुद्धि पत्र छपवा कर सूत्रों के साथ जोड़ दूंगा-मुनिजी आप श्राज ही विहार क्यों करते हो ? मुनि०-गुरु महाराज की आज्ञा है ! सागरजी-फिर कभी मिलना । मुनि०-कृपा दृष्टि रखना, अविनय हुई हो तो माफ करना । बैशाख शुक्ला २ को योगीराजश्री व मुनिजी विहार कर कतार गांव पधारे, इस बात की खबर थोड़े लोगों को ही पड़ी, जब विहार करने के बाद आचार्यश्री तथा शहर के लोगों को खबर हुई तो दूसरे दिन अक्षय तृतीया होने से बहुत से लोग कतार गांव यात्रार्थ आये । मुनिश्री ने दो दिनों में पन्नवणा सूत्र के मूल पाठ का शुद्धि पत्र तैयार कर सागरजी के एक भक्त के साथ भेज दिया और कहा कि कल हमारा यहाँ से विहार होगा, तथा समवायांगजी सत्र के लिए सागरजी से कहना कि उसको शुद्धि पत्र तैयार नहीं
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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