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________________ ५८१ सुरत से विहार का कारण काले विहार करी कतार गांव जवानो छ। मुनि०-क्या कल ही विहार करना है ? योगी०-हाँ, कल ही। मुनि०-इसका क्या कारण है ? पन्नवणा सूत्र तो देखने दो। योगी०- नहीं, कल ही विहार करने का है। मुनि:-श्राप समझ गये कि आप इस क्लेश के कारण ही विहार करते हैं, किन्तु मुनिश्री दुविधा में पड़ गये, क्योंकि इधर तो सागरजी का कार्य अधूग छोड़ जाना अच्छा नहीं समझा, उधर गुरु महाराज की आज्ञा का पालन करना भी आवश्यक था, गुरु महाराज को कई भांति अर्ज की, किन्तु आपने फरमा दिया कि मेरी आज्ञा में रहना है तो कल विहार करो। बस, फिर तो सवाल ही नहीं रहा अतः विहार की सब तैयारी कर ली। . योगी-जात्रो सागरजी से मिल लो और क्षमाप्रार्थना भी कर लो। मुनि०-मैं जाऊँ ? योगी-हाँ, इसमें क्या है ? क्या तुमने बृहत्कल्प सूत्र नहीं पढ़ा है ? वहाँ स्पष्ट लिखा है कि खमावा है वह आराधीक होता है और जो नहीं खमावा है वह आराधोक नहीं होता है । अतः यदि तुमको पाराधीक होना हो तो जाकर सागरजी को खमालो। ___ मुनि०-गुरु माझा शिरोधार्यकर साथ में पन्नवणाजी सत्र लेकर पास ही में ठहरे हुए सागरजी के पास गये और कहा कि हम लोग विहार करते हैं, अतः हमारे कारण से आपको रंज पहुँचा हो तो हम क्षमा चाहते हैं, तथा यह आपका पन्नवणा सूत्र, यदि आप भाज्ञा दें तो मैं कतार प्राम तक साथ में ले जाउँ, वहाँ इसका
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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