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________________ ५६७ श्री सिद्धिगिरि की यात्रा रिचय पहिले था उसी भाँति रहा; उनमें एक विनयश्री साध्वी थी वह तो इतनी नादान तथा खराब आचरण वाली थी कि कभी २ हरिसागर के साथ कुश्ती, खेल आदि किया करती थी, और आखिर उसकी यह दशा हुई कि उसने गर्भवती हो वेष परित्याग कर एकपुत्र को जन्म दिया। जब उसका छुटकारा हुआ तो फिर खरतरों के गुरुबन गई । और आज वह विद्यमान भी है । मुनिजी की तबियत पालीताणा में ही कुछ खराब थी, फिर विहार के कारण विशेष खगब होगई थी। इधर अहमदाबाद वालों ने नगर में पधारने का आग्रह किया, पर बाड़ी की आबहवा अच्छी थी, तथा फलौदीवाले पदमचंदजी, संपतलालजी. वगैरह नया माधौपुरा में नजदीक ही थे; वहाँ आप कुछ औषधि सेवन कर रहे थे; जब थोड़ी बहुत तन्दुरुस्ती हुई कि उधर से गुरु महाराज का पत्र पाया कि तुम मारवाड़ न जाश्रो किंतु मेरे पास श्रा जाओ। इस हालत में आपको अहमदाबाद से विहार कर सुरत जाना पड़ा, रास्ता पहिले वाला ही था। रास्ते में जो कोई साधु होता तो श्राप उससे अवश्य मिलते । आपको इस बात का बड़ा शौक था । यदि भार्ग में ५-७ मील की दूरी पर इधर उधर भी साधु का नाम सुन लेते तो आप चक्कर खा कर भी उनसे अवश्य मिलते थे। • जब गुरु महाराज को यह समाचार मिला कि आज मुनिश्री कतारगांव पधारने वाले हैं तो आप स्वयं कई भक्त श्रावकों को साथ लेकर तारगांव पधारे, तथा आप गुरु शिष्य की वहाँ पर आनन्द पूर्वक भेंट हुई, मुनिजी ने अपनी यात्रा वगैरह, का सब हाल गुरुजी को निवेदन किया ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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