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श्रीने कहा हाँ बोल तमारे शु कहवानो छे १ ना साहिब आप वे- ला आवी ने पानी बोहरिया करें, आपने माटे पाणी ठारी घड़ो जुक्षेज राख्यो छे, पेढ़ी ना मुनीमजी श्रमने कही गया छे, ओटले आपने अर्ज करी छे ।
आदर्श-ज्ञान- द्वितीय खण्ड
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दूसरे दिन तड़के २ ही पास में ठहरे हुए खरतरों के साधुओं ने तैयारी कर मुनिश्री से कहा, चलो यात्रा करने को। मुनिश्री ने कहा अभी तो अंधेरा है, प्रतिलेखन भी करनी है, साधुओं ने कहा कि हम लोगों ने तो प्रतिलेखन कर ली है, पहाड़ पर चढ़ना है अतः शीघ्रता करो । मुनिश्री ने कहा, महात्मन् यात्रा संयम की वृद्धि के लिए की जाती है, न कि विराधना के लिए जरा ठहर जाओ, सूर्योदय होने दो । मुनिश्री के कथनानुसार वे साधु ठहर गये, जब ठीक समय हो गया तो मुनिश्री प्रतिलेखन कर तैयार हुए । चलते समय खरतरों की साध्वियाँ एवं कई थली की विधवा औरतें भी साथ हो गई, वे हरिसागर के पास चलती हुई खूब दिलगी एवं मजाक की बातें कर रही थीं, पहाड़ पर चढ़ने में तो वे साध्वियाँ एवं विधवाएँ इतनी छालों पर आ जाती थीं कि अपने - शरीर से साधुओं का संगटा भी कर देती थीं, साध्वियाँ भी उनसे किसी प्रकार कम नहीं थी, इस प्रकार का दुश्चरित्र देख पहिले ही दिन मुनिश्री को घृणा आने लगी कि इस पवित्र तीर्थ यात्रा का समय कर्म तोड़ने का है यदि यहाँ ही कर्मबंध का कारण हो तो -बड़ी अफसोस की बात है । क्षमासागरजी समझ गये, तथा वे मुनिश्री को लेकर आगे बत घरे । हरिसागरजी, साध्वियों और विधवाओं के साथ पीछे रह गये। मुनिश्री से रहा नहीं गया अतः क्षमासागरजी से कहा कि आपके साधु-साध्वियों की यह