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________________ भादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड लोगों पर खूब ही प्रभाव डाला । भावनगर एक अच्छा शहर है जैनों की आबादी भी अच्छी है, धर्म पर पूर्ण प्रेम है, जैन संस्थाएं ठीक व सुचारू रूप से कार्य कर रही हैं, मुनिराज पाते समय तो चुप चाप आ गये, पर जाते समय तो सबको मालूम थी, अतः विहार के समय सैंकड़ों नर-नारियां आपको बहुत दूर तक प हुँचाने को गये, लोगों का दिल वापिस लौटने को नहीं चाहता था। ८७ श्रा सिद्धगिरि की यात्रा का आनन्द० जब आपने सुरत से विहार किया था तब से मार्ग में जितने गुजराती साधु साध्वियों की भेंट हुई, उनके आचार व्यवहार देख कर आप को घृणा आने लगी, तथा मेझरनामा लिखने में इतने कारण मिलते गये कि सिद्ध क्षेत्र पहूँचे वहाँ तक मैझरनामा का • कलेवर बढ़ता हो गया अतः मेझरनामा सम्पूर्ण नहीं हो सका। ... जब भावनगर से विहारकर देवगण हो कर दूर से सिद्धगिरि के दर्शन किए तथा वहां चैत्यवन्दनादि सब क्रियाएं की। शहर समीप आने लगा तो माणक मुनि ने पूछा, कहो मुनिजी आप कहां ठहरोगे ? मुनिश्री ने उत्तर दिया कि आप यह बात क्यों पूछते हो, क्या आप हमारे से अलग ठहरोगे ? ____ माणक मुनि-हां, हमारे सिंघाड़ा के पद्ममुनि वैगरहः 'मोती सुखिया' की धर्मशाला में ठहरे हुए हैं हम तो उनके साथ में ठहरेंगे, यदि आप भी ठहरें तो कोई नुकसान नहीं है, पर वे शत्रुञ्जय पर रहे हुए हैं अतः फिर आप उनके आचार व्यवहार देख छेड़-छाड़ नहीं कर सकोगे, कारण सब साधुओं की प्रकृति एक सी नहीं होती है।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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