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________________ आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड ५४२ श्रावक भी पास में नहीं था । वे रुपये दानविजयजी ने उठाकर आलमारी में रखदिये तो इस प्रकार कितनी ही स्त्रियों को धोखे में डाल अपनी मनोकामना पूर्ण करता होगा ? अतः ऐसे परिग्रह धारियों को कोई भी जैन - जैनसाधु नहीं माने । इत्यादि । माणकमुनि की प्रेरणा से पन्नालाल बाबू की धर्मशाला की ओर से एक जनरल सभा होने का निश्चय हुआ, जिसके हैण्डबिल भी वित्तीर्ण करवा दिये। यह सुनकर दानविजयजी, लब्धि विजयजी ने सोचा कि माणकमुनिजी और यह मारवाड़ी साधु बड़े ही झगड़ायल हैं; यदि वह सभा में अपने विषय में कुछ कहेगा और अपने भक्त लोग सुनेंगे अतः कहीं शंका पड़ गई तो पाप का घड़ा फूट जावेगा । अत: कल अपने यहां भी सभा करें ताकि कम से कम अपने भक्त तो माणक मुनि की सभा में न जावेंगे । बस, दूसरे दिन दोहर को दोनों श्रोर से सभाएं हुई। मुनिश्री ने माणिकमुनि से कहा कि अपनी सभा में तो मैं भाषण कर दूंगा, और आप उनकी सभा में पधार जाओ, श्रतः यदि वह कुछ कहेगा तो आप सभा में जवाब दे सकोगा। यह बात माणकमुनिजी के भी जंच गई और वह टाइम पर दानविजयजी के वहाँ चला गया । तथा एक हैंडबिल जो उनकी तरफ निकला था वह भी साथ लेता गया, जब माणिकमुनिजी वहाँ से गया तो साधुओं ने कह दिया कि तुम यहाँ क्यों आये हो ? बहुत से गृहस्थ एवं नवयुवक भी उपस्थित थे, साधुत्रों का कहना उनको नागवार गुजरा। माणिक मुनिजी ने हैंडबिल निकाल कर बतलाया कि मैं श्रामन्त्रण से आया हूँ । बस, मारणकमुनि एक खाली पड़े हुए पाटे परआसन लगा कर बैठ गये। बाद में साधुओं का व्याख्यान शुरू
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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