SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 621
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ५३२ नहीं जानते हैं; अतः उनके लिए इस पुस्तक की रचना की गई है। ___ १००० प्रतिए जैन मंदिरों की ८४ आशातना-यह नाम से ही प्रख्यात है। ___ १००० प्रतिएं आगम निर्णय - इसमें यह स्पष्टतः बताया है कि आगमों में क्या लिखा हुआ है और ढूंढ़िया क्या कररहे हैं। १००० प्रतिए चैत्यवन्दनादि-इसमें मुनिश्री के बनाये हुए चैत्यवन्दन, स्तुतिएं स्तवन,स्वाध्याय आदि का संग्रह किया हुआ है। __१००० प्रतिए जिन स्तुति-इसमें मंदिर में जाते समय जिनस्तुति करने योग्य कविताओं का संग्रह है। १००० प्रतिएं व्याख्या विलास-इसमें योगीराज श्री रत्नविजय जी महाराज साहिब के व्याख्यान का संग्रह किया हुआ अच्छा साहित्य है। ___ ५०० प्रतिए श्रीसुखविपाक सूत्र मूल पाठ-यह महा मंगलिक सूत्र जब कि साधु महात्मा चतुर्मास करने को किसी गाम में जाते हैं तब सबसे पहला इस सूत्र को बांचते हैं कि श्रीसंघ में सदैव मंगल रहता है । इसमें यह विशेषता है कि जहां सूत्र में अन्य सूत्रों की भोलामण दी हैं आपने वहां का पाठ भी यहां दर्ज कर दिया है कि पढ़ने वालों को अच्छी सुविधा एवं आनंद रहे। १००० प्रतिए शीघ्र बोध भाग प्रथम ! ___१०००,, , भाग द्वितीय । १००० ,, ,, भाग तृतीय । इन तीनो भागों में शास्त्रीय तात्विक ज्ञान को थोकड़ा के रूप में लिखा गया है, जो कि मुनिश्री को कण्टस्थ थे। इस प्रकार सुरत के चतुर्मास में मुनिश्री के उपदेश से कुल
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy