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________________ ५३१ सागरानन्द सूरि और भंडारी जी अशुद्धियों की ओट में प्रश्नों के उत्तर मारा जाना आप जैसे विद्वानों को शोभा नहीं देता है, फिर आपकी इच्छा की बात है। सागर-पर प्रश्नों का उत्तर देना या नहीं देना तो मेरी इच्छा की बात है न ? भंडारीजी०-वंदन कर वहां से स्थान पर जाकर सब हाल मुनिश्री को लिख दिया, जिसको पढ़ कर मुनिश्री ने समझ लिया कि सागरजी केवल पाटा के ही विद्वान हैं । कागज पर लिखे हुए सूत्र पढ़ कर साधुओं को सूत्रों की वाचना देकर एवं पंडितों द्वारा प्रेस कापियाँ करवा कर व सूत्र छपवा करके ही नाम पैदा किया है । खैर कभी रूबरू मिलने का मौका भी मिल जावेगा। ८२ सूरत के चतुर्मास में साहित्य प्रचार . इस चतुर्मास में भी आपने कई पुस्तकें मुद्रित करवाई थीं, ५०० प्रतिए बत्तीस सूत्र दर्पण-इसमें ३२ सूत्रों के स्थान लिख कर यह बतलाया गया है कि कई आचरण ३२ सूत्रों में होने पर भी ढूंढ़िया नहीं करते हैं, तब कई आचरण मन कल्पित करके जैन धर्म की निंदा करवा रहे हैं। १००० प्रतिए जैन दीक्षा-इसमें यह बतलाया गया है कि दीक्षा के योग्य कैसा मनुष्य होना चाहिये । १००० प्रतिए जैन नियमावलि-मारवाड़ के कई अज्ञानी लोग अपने नियमों से बिलकुल अज्ञात ही हैं, उनकी सुविधा के लिये यह छोटो सी पुस्तक बनाई थी। __ १००० प्रतिए प्रभु पूजा-प्रभु पूजा निश्चय ही मोक्ष का साधन है, पर कई अज्ञ लोग अभी तक पूजा की विधि को भी
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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