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आदर्श-ज्ञान- द्वितीय खण्ड
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हुआ मंदिर एवं भव्य मूर्ति थी, मालुम होने पर उन्होंने कई श्रावकों को सामने भेजा अतः मुनिश्री अपना संघ ले कर समीने खेड़े पहुँचे । इस विकट स्थिति में गुरु महाराज का पधारना उन लोगों के लिये बहुत ही उपकार का कार्य हुआ; दो दिन वहां ठहरकर धूमधाम से पूजा पढ़ाई, वरघोड़ा निकाला। श्रीमान् रोशनलालजी ने कोशिश कर रास्ते में चौकी माफ का परवाना भी मंगवा दिया; वहां से संघ रवाना हो क्रमशः धूलेवाजी पहुँच कर श्री केसरियानाथ बाबा का दर्शन किया; यह दर्शन पहले पहल होने से इतना श्रानंद आया कि जिसका वर्णन न तो मुख द्वारा ही कहा जा सकता है और न लेखनी से लिखा जाता है ।
आपने धूलेवे पांच दिन ठहर कर खूब ही आनंद लूटा, केसरियाजी के कई स्तवन भी बनाए। जिस समय आपको बिहार करना था तो मन्दिर में दर्शन करने को गए किंतु प्रभु की भक्ति नहीं छूट सकी, वहां ही एक स्तवन बनाया " मनमोहन श्रलु आ रही " 1
संघ के सब लोग वापिस लौट कर सादड़ी की ओर गये, केबल भंडारीजी चंदन चंदनी ही आपके साथ रहे, उस समय प्लेग का इतना जोर था कि भंडारीजी खेरवाड़ा की छावणी तक अर्थात् पांच कोस तक एक आदमी की मजदूरी के पांच रुपये देने को तैयार हो गये पर आदमी नहीं मिला, उस हालत में भंडाराजी ने हिम्मत कर चार कोस तक सब सामान उठा कर मुनिश्री के साथ पैदल चले । चार कोस चल कर जंगल में एक कुँवां पर भँडारीजी ने रसोई बनाई, भोजन कर वहाँ से आगे चले, एक तो भंडारीजी के पास छोटा मोटा बजन ज्यादा था, दूसरे बहुत से