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भानपुरा में शान्तिस्नात्र
जिनकी लोग आशा और अभिलाषा करते हैं: पाली में शांति पूजा पढ़ाने से प्लेग चला गया, आप भी इन महात्मा से विनय कर अपने यहां शांति पूजा पढ़ाइये । राजाधिकारी लोगों ने महाजनों को बुलाकर कहा कि तुम्हारे महाराज आये हैं; रीति रिवाज के अनुसार ग्राम में लाभ और शांतिस्नात्र बडी पूजा पढ़ाओ । महाजन मुनिश्री के पास श्राये; किंतु मुनिश्री ने उस समय इन्कार कर दिया कि हम लोगों को तो आगे जाना है, रात्रि में यहाँ ठहर कर प्रातः ही चले जावेंगे ऐसी हमारी भावना है। यह बात राज्य कर्मचारियों को ज्ञात हुई तो राज की एवम् अखिल ग्राम की ओर से श्रति आग्रह हुआ जिसको एक उपकार का कारण समझ कर स्वीकार किया, फिर तो था ही क्या राज की
र से सम्मेला कर मुनिश्री को ग्राम में ले गए। दूसरे दिन मैदान में मांड़वा बना कर निन्यानवे प्रकार की पूजा पढ़ाई गई; गुरु कृपा से शांति हो गई तथा उस दिन प्लेग का एक भी केस नहीं हुआ । यही कारण था कि उदयपुर तक दो ऊँट व दो आदमी राज्य की ओर से दिये गए, और कई लोग वहां से यात्रार्थं मुनिश्री के साथ हो गये। वहां से सायरे गये एक रात्रि वहां ठहरे वहां से एक गुरां, कुंकुम और केसरबाई वगैरह यात्रार्थ साथ हुए ।
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वहाँ से ढोल, कंबाल, नादांमा, मोटेग्राम और मदार आये रास्ते में कई स्थानकवासी कई तेरहपन्थी लोग भी मुनिश्री का उपदेश सुनकर साथ में हो गए और वहाँ से चलकर उदयपुर आये किंतु वहां भी प्लेग होने के कारण रोशनलालजी चुतर वगैरह बहुत से आदमी समीने खेड़े ठहरे हुए थे, कारण वहां एक सम्प्रति राजा का बनाया