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________________ ४६७ पोली में शान्ति स्नान पूजा आपका सुसराल था। चार दिन ठहर कर खूब उपदेश दिया; कई लोगों ने ढूंढ़ियापना छोड़ कर आपका वासक्षेप ले कर संवेगी श्राम्नाय धारण की। वहाँ से रोइट पधारे, वहाँ भी दो सुयोगों को वासक्षेप दिया, वहाँ से पाली पधारे, वहाँ भी प्लेग चलता ही था, ब्राह्मण लोगों ने वर्णी बैठा कर कई मन घृत होम डाला पर कुछ भी नहीं हुआ। आपके पधारने पर केवल जैन ही नहीं पर सब कौमों, एवं शहरवालों ने आकर अर्ज की कि आप महात्मा हो हम लोगों पर उपकार कर शान्ति का उपाय बतलाइये। आपश्री ने कहा कि शांतिस्नात्र बड़ी पूजा पढ़ाओ; शहरवालों ने मुनिश्री के उपदेश से चॅदा कर रकम इकट्ठी की और राजलदेसर से यति माणकसुंदरजी को बुलवा कर वृहत् शांति स्नात्र पूजा पढ़ाई, मंत्राक्षरों से बल बाकुल दिलवाया। गुरु कृपासे सब तरह शांति हो गई, यह एक आपके यश नाम का ही उदय था कि जिस काम में आप हाथ डालते वही कार्य सिद्ध हो यश आ ही जाता । पाली के हिंदू--मुसलमान मुनिश्री की एवं जैनधर्म की भूरि २ प्रशंसा करने लगे। ___ पाली से विहार कर बूसी, बरकाणा, राणी स्टेशन तथा राणी गाँव पधारे । वहाँ पन्यासजीश्री हर्षमुनिजी महाराज के दर्शन हुए, और भंडारीजी चन्दनचंदजी साहब भी वहां ही मिल गये । पं० हर्षमुनिजी ने कहा कि तुमको गुजरात चलना है तो हमारे साथ चलो । किंतु आपने कहा कि मुझे पहिले श्रीकेसरियानायजी की यात्रा करनी है, अतः आप भी पधारें, पन्यासजी ने इन्कार कर दिया तब वहाँ से आप मुड़ारे पधार गये। सादड़ी में इस बात
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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