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________________ ४५५ फूलचंदजी सभा में नहीं आये तक क्यों नहीं श्राये हैं ? इस पर समीप में ही फूलचंदजी का मकान था भंडारीजी वहां गये तथा कहा कि गयवरमुनिजी तो कब के ही गये हैं, अब दो बज गई है अतः आप भी पधारिये । फूल०- मेरी तो इच्छा है, और मैंने आपको जबान भी दे दी थी, किंतु ये श्रावक लोग मना करते हैं और आने नहीं देते हैं । भंडारी० – बड़े आश्चर्य की बात है - आप श्रावकों की आज्ञा में हो, या श्रावक आपकी आज्ञा में हैं ? फूल० - किंतु देखो तो सही, ये तो श्री कर श्रड़े बैठ गये हैं । भंडारी० -- तब आपको पहिले ही श्रावकों को पूछ कर गयवरमुनिजी को बुलाना था; अब यदि आप नहीं आओगे तो एक तो आप साधु हैं और आपकी जबान जावेगी; दूसरे लोग समझ लेंगे कि दूँ ढ़ियों में सत्यता नहीं हैं इसी कारण वे चर्चा निश्चय करके भी नहीं आते हैं और आपको इन श्रावकों की इतनी क्या दाक्षिण्यता है ? यदि ये रोटी पानी न दें तो शहर बहुत बड़ा है; अतः आपतो हिम्मत कर के चलिये, इस में ही ठीक है फिर जैसी आपकी इच्छा। यदि आप नहीं पधारो तो स्पष्ट कह दो जिससे कि मैं सभा में जाकर कह दूँ कि वे अपने अपने ठिकाने जावें । फूल - हाँ कह दो | ● भंडारी० - महाराज हमको ऐसी आशा नहीं थी कि आपके यहाँ इतनी पोल है, तथा गृहस्थों से डर कर आप अपने जीवन तुल्य वचन को मिट्टी में मिला देवेंगे ? फूल० - आप चाहें जो समझें, अब मैं आ तो नहीं सकता हूँ ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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