SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 522
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३५ रूप० सूरिजो के आनन्म का पार रूप०-आखों से अश्रुधारा तो बह हो रही थी, फिर भी रूपसुन्दरजी संघ के आडम्बर और सूरिजी के डाले हुए जादु के कारण कमर बांध कर गुरुजी को वन्दन नमस्कार कर उपकार मानते हुए सूरिजी महाराज के पास चले गये । बस सूरिजी के साधुओं में बड़ा ही आनन्द छा गया कि मारवाड़ में आते हो आज एक सोने की चिड़िया हाथ लग गई है। जैसे किसी अपुत्रिय के पुत्र होने से खुशी मनाई जाती हो बस उसी खुशी से सूरजी महारज संघ के साथ लोहावट होते हुए फलौदी पधारे । फलौदी के श्रीसंघ ने सूरिजी और श्रीसंघ का बड़ा ही सत्कार किया किंतु रूपसुँदरजी को साथ देख कर माणकलालजी कोचर ने सूरिजी से कहा कि आप इस बला ( आफत ) को साथ कों लाये हो ? हमने यहां ९ मास तक आपकी प्रकृति देख ली है। इस पर सूरिजी ने कहा अपना गया भी क्या है, यदि पढ़ेगा नहीं तो पानी के घड़ तो लावेगा, कपड़ों को भी तो धो डालेगा, इस उपरान्त भी योग्य नहीं जचा तो कान पकड़ कर निकालते क्या देर लगती है ? सूरिजी महाराज ने फलोदी का झगड़ा निपटा कर जैसलमेर की ओर विहार किया, जब श्राप लाटी पहुँचे तो साधुओं की बातों में आ कर अपने वचनों को भूल गये और रूपसुंदरजी को छोटी दीक्षा दे दो। बाद जैसलमेर जाकर यात्रा की । वहाँ जो सात आठ हजार का चढ़ावा हुआ था वह जैसलमेर वालों को न दे कर अहमदाबाद आनन्दजी कल्याणजी की पेड़ी में जमा करवा दिया, वहां से लौट कर वापिस फलौदी पधार गये । इधर मुनिश्री ने आचार्यश्री के वचनों पर विश्वास कर
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy