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________________ ४१९ फलौदी में पूज्यजी का मिलाप था उस समय मेरे त्याग वैराग्य और आज के त्याग वैराग्य में कोई फर्क या दोष हो तो आप ही फरमावें। पूज्यजी०-मैं कब कहता हूँ कि तुम चारित्रसम्बन्धी दोष के कारण हम से अलग हुए और भंडोपकरण ज्यादा कम रखना यह तो अपनी २ क्षयोपसम का ही कारण है । यदि तुम अच्छा चारित्र पालोगे तो तुम्हारा कल्याण जल्दी होगा, पर मेरा तो कहना है कि तुम किसी को निन्दा मत करो। ___ मुनि-पूज्य महाराज आप मेरी प्रकृति तो अच्छी तरह से जानते हो; आप अपने श्रावकों को उपदेश एवं हिदायत कर दो कि, तुम किसी की निंदा मत करो, बस स्वयमेव शान्ति हो जायगी। ___ पूज्य०-ठीक, मैं श्रावकों को कह दूंगा। समय हो गया है, अतः मैं जाता हूँ। आप सुख शान्ति और आनन्द में रहना । . पूज्य महाराज समय का बहाना ले अपना पीछा छुड़ा कर चले गये और विचार किया कि यहां ज्यादा रहने में सार ( तत्व ) नहीं है तथा, शायद अपने साधुओं से एक दो साधु फिर संवेगी न बन जावें इसलिए जल्दी से विहार करना ही अच्छा है। ___बस, दूसरे ही दिन किसी को खबर भी नहीं हुई और पूज्यजी विहार कर चीले पधार गये और वहाँ से लोहावट चले गये । लोहावट के जाटावास में १२५ घर मूर्तिपूजक और केवल एक घर ढूंढ़िया का है, किन्तु मूर्तिपूजक मालचन्दजी कोचर की श्रद्धा के विषय में पहिले गड़बड़ सुनी थी, पूज्यजी का इरादा उस को मुंह बंधाने का था। अतः आपने जाटावास में डेरा लगा दिया। तिसरे दिन मुनिश्री ने विहार किया तो चीले ३५० आदमी पहुँचाने के लिए गये और ४० आदमी लोहावट से लेने के
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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