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आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
जिसके लिये कि श्राप आशा कर के पधारे थे । खैर, आप अमृतसर और लौद्रवाजी की यात्रा कर पुनः जसलमेर पधारे । खरतरगच्छ के उपाश्रय में श्रावकों को एकत्रित करवाये और कहा कि हम लोग हूँढ़ियों से निकल कर संवेगी हुए हैं और हमको खास प्राचीन सूत्र देखने हैं इस लिये हम यहाँ आये हैं, मूर्ति पूजा के विषय प्रमाण की तो हमको खास ही रूरत है । यदि आपके घर में पोल हो, एवं आप सूत्र नहीं बतलावोगे तो हमारे दिल में बड़ा ही रॅज रहेगा और मूर्तिपूजा की सिद्धि के लिए हम दूसरों को डंके की चोट कह भी नहीं सकेंगे, तथा फलौदी जा कर हम इस बात का खूब जोरों से प्रचार करेंगे कि श्रीसंघ की सम्पति होने पर भी जैसलमेर वाले ज्ञानभंडार क्यों नहीं दिखाते हैं । अतः इस बात को आप खूब सोच लेना, इत्यादि जोशीले शब्दो में धमकी दी। साथ मेंअखेचँदजी ने भी कहा कि मुनिश्री को आपने साधारण साधु ही समझ लिया होगा पर यदि आप इस बात का आंदोलन कर देंगे तो आपको जवाब देना मुश्किल हो जायगा इत्यादि । बस फिर तो देर ही क्या थी, उसी समय कुञ्जियों ला कर ज्ञानभंडार खोल कर सूत्रों की प्रतियें बाहर लाये । चार घंटे तक आपने वहाँ बैठ कर सत्रों को देखा और कई खास जरूरी बातें थीं उनका मल सूत्र वगैरह को नोट भी कर लिया। दूसरे दिन भी आपने जल्दी जा कर और भी जो सत्र देखने थे वे देखे और उस ज्ञानभंडार का एक स्तवन भी वहीं पर बना कर श्रावकों को सुना दिया। _____ आप १९ दिनों में यात्रा कर मागसर शुक्ला ७ को पुनः फलौदी पधार गये, पर अभी तक पूज्याजी हा बीकानेर से फलौदी पधारना नहीं हुआ था।