SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 469
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८६ आदर्श-ज्ञान द्वितीय खग लेकर फलौदी आये, और उसी सराय में ठहर गये, जो जिसके एक ओर मुनिश्री ठहरे हुए थे। इस बात की खबर श्रावकों को हुई तो उन्होंने आपका बहुत सत्कार किया। अभी तक मुनिश्री की मुलाकात आपसे नहीं हुई थी, मुनिश्री को खबर मिलते ही श्राप अपनी क्रिया से निवृत्त होकर थडिला भूमिका पधार गये । और वहाँ से सीधे ही श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ के मन्दिर जाकर जब तक व्याख्यान का समय नहीं हुआ वहीं ठहर गये । जव व्याख्यान का समय हुआ तो आकर सीधे ही व्याख्यान के पाटे पर बैठ कर व्याख्यान शुरू कर दिया, इतने में गणेशमलजी, रानकुँवार वगैरह सब निपट कर व्याख्यान में आ पहुँचे। ___ मुनिश्री बड़े ही समयज्ञ थे, आपने व्याख्यान में स्थानकवासी मत की उत्पत्ति का समय और कारण अच्छी खूबो से बयान किये, बाद में मूर्तिपूजा के विषय में शास्त्रीय प्रमाण तथा आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा ओसवाल एवं श्रेष्टि गोत्र की वैद्य मेहता शाखा और इस गोत्र में अनेक नर रन हुए उनका इतिहास और अन्त में कहा कि मैं ढूँदिया वेष का त्याग क्यों किया है, और वेष त्याग करने के पश्चात् मेरे आचार व्यवहार में क्या २ परिवर्तन हुआ इत्यादि ढाई घण्टे तक व्याख्यान दिया। - गणेशमलजी और राजकुंवर मुनिश्री का व्याख्यान सुन कर चकित हो गये और मन ही मन कहने लगे कि जो बीसलपुर में बातें सुनी थीं वे सबकी सब गलत एवं द्वेषपूर्ण थीं । यदि भ्रष्ट हो जाते तो इस प्रकार हजारों लोग सेवा कैसे कर सकते हैं, वैर इस बात का निर्णय फिर दोपहर को करेंगे।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy