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व्याख्यान में सूत्र पूजा
इत्यादि अच्छे जानकार श्रावक थे, तथा स्थानकवासियों में अगर चन्दजी वैद्य, बख्तावर चन्दजीढढा आदि भी आये । कई शास्त्रों के प्रश्न किए जिसका मुनिश्री ने अच्छी तरह से समाधान भी किया जिससे उपस्थित श्रावकों और साध्वियों को अच्छा सँतोष हुआ ।
व्याख्यान में फिलहाल श्री सुख विपाक सूत्र बांचने का निर्णय हुआ। शाम को बहुत से लोग प्रतिक्रमण में आये; आपने अपने बनाये हुए स्तवन और स्वद्याय अच्छी राग एवं उच्च स्वर के साथ सुनाये जो कि लोगों को बहुत रुचीकर प्रतीत हुए और प्रतिक्रमण में श्रावकों की सँख्या भी बढ़ने लगी । प्रतिक्रमण के पश्चात् भी कई श्रावक प्रश्नोत्तर के लिए बैठ जाते थे और अनेक विषयों पर प्रश्नोत्तर हुआ करते थे । लोगों को आश्चर्य इस बात का हुआ करता था कि ढूंढ़ियापन से निकले को थोड़े ही दिन हुए, और आपको संवेगी साधुओं का विशेष परिचय न होने पर भी इस प्रकार से प्रत्येक प्रश्न का स्पष्ट समाधान कैसे कर देते हैं ?
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दूसरे दिन व्याख्यान के निश्चित समय के पूर्व ही धर्मशाला श्रोतागणों से भर गई। कई लोग थाली में नारियल, चांवल, सुपारी, कुँकुम, फल-फूल, और रोकड़ मुद्रिकादि लेकर आये । मुनिश्री ने पूछा यह क्यों ? श्रावकों ने विनोद में कहा कि महाराज ! यहाँ ढूँढ़ियाधर्म नहीं है, हम लोग सूत्रजी की पूजा करेंगे तत्पश्चात् विनय, भक्तिपूर्वक सूत्र सुनेंगे। मुनिजी विचक्षण थे, आपने कहा कि आप लोग बड़े ही बुद्धिमान् हैं कि हम लोगों को उपदेश देने की आवश्यकता ही नहीं हुई । केवल आप ही क्यों, पर जिसका उल्लेख श्रीराजप्रश्नी सूत्र के मूल पाठ में है, पुस्तक की पूजा तीन ज्ञान वाले सम्यग्दृष्टि देवताओं ने भी की है।