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________________ ३५९ मुनिश्री का फलौदी में प्रवेश है, यदि यहाँ आवे तो तुम भक्ति कर अपनी ओर मुका लेना; अतः खरतरगच्छ की साध्वियां और गृहस्थ भी आपकी सेवा करने में तत्पर थे। तीसरे उपकेश ( कवला ) गच्छ वालों के साथ वो आपके तीन सम्बन्ध थे; एक तो आप संसार में जाति के वैद्य मेहता हैं और फलौदी में १०० घर वैद्य मेहतों के थे और दूसरे अपनी जाति में ऐसे लोकोत्तर पुरुष के होने का किसको गौरव नहीं होता है, तीसरे आपने उपकेश गच्छ के उद्धार के लिये कमर कस रखी थी जो गच्छ प्रायः लुप्त होने में था। अतः इन कारणों को देखते हुए हर्ष और उत्साह होना स्वाभाविक ही था। . ___ यों तो फलौदी में बहुत से विद्वान् साधु और प्राचार्य महाराज पधारे थे, किन्तु इस समय की अगवानी का ठाठ कुछ अनोखा हो था । हजारों नर नारियों फिर भी बाजे गाजे के साथ नगर के पांचों मन्दिरों के दर्शन किए जिसमें विशेषता यह थी कि आप जिस मन्दिर के दर्शन करते थे वहीं नया स्तवन बनाकर प्रभु की स्तुति किया करते थे जब धर्मशाला में पधारे उस समय लोगों को खड़े रहने तक का स्थान भी नहीं मिला, बहुत से लोगों को तो बाहर ही ठहरना पड़ा। मुनिश्री ने अल्प किन्तु सारगर्भित देशना दी बाद प्रभा वना हुई और जनता हर्षनाद से जय बोलती हुई स्व २ स्थान गई। सब लोगों के चले जाने के बाद खरतरगच्छ को साध्वी ज्ञातश्री बल्लभश्री ने विनय को के आप थके हुए पधारे हैं और दिन भी बहुत आ गया है, हम लोग गोचरो पानी ले आवेंगे। मुनिः-नहीं, मैं खुद जा कर गौचरी पानी ले आऊँगा। _. साध्वी०-आप इतना सँकोच क्यों रखते हो? हमारे साधुओं के लिये भी हम ऐसे अवसर पर आहार पानी ला देती हैं और
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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