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________________ ३५३ मुनिश्री और मांगीलाल महाव्रत की भावना ही कहाँ से रहती है, इसी प्रकार रेल में बैठना तथा रुपया पैसा रखना समझ लीजिये। ___ अब रही पुनः दीक्षा लेने की बात, यह तो एक समुदायिक मर्यादा है, किन्तु इससे पहिले पाली हुई दीक्षा चली नहीं जाती है. जैसे पार्श्वनाथ के शोसनवर्ती साधु महावीर के शासन में श्राते हैं तब निरातिचार पुनः दीक्षा लेते हैं, तो इससे उनकी पहिले पाली हुई दीक्षा चली नहीं जाती है इसी प्रकार अपनी दीक्षा को भो समझ लीजिये। खैर मैं तो तुमको यही कहता हूँ कि तुम ढूंढियापना छोड़ा सो तो अच्छा ही किया, किन्तु रेल में बैठना, कच्चापानी पीना, रुपयापैसा पास रखना ये कार्य बिल्कुल ठीक नहीं किए । खैर, जो भवितव्यता थी वह होगई किन्तु अभी पक्षत्व को छोड़ खूब अच्छी तरह से निर्णय करके ही दीक्षा लेना ताकि फिर पश्चात्ताप न करना पड़े। मांगी-आपने तो निर्णय करके ही पुनः दीक्षा ली है ना ? मुनि०-हाँ, मैंने मेरी बुद्धि से तो पूर्णतया निर्णय कर लिया है। मांगी०-अब आपको खरतरगच्छ में तो नहीं पाना है न ? मुनि०-यदि खरतरगच्छ वाले मुझे ठीक समझा देवें तो मुझे इन्कार नहीं है। मांगी-आपको तो पहिले से ही तपागच्छवालों ने पक्का कर दिया है, दूसरे गुमानमुनिजी की पुस्तकों ने तुम्हारे पर पक्का रंग चढ़ा दिया है, अब तुमको समझाने वाला कौन है, अच्छा मैं जाता हूँ, यदि रेल किराये का प्रवन्ध हो सके तो करवा देना । सुनि:- इस विषय में मैं क्या कहूँ। तुम मुनीम से मिलो। मांगीलाल ने नीचे जाकर मुनीम से कहा कि मुझे बम्बई जाना!
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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