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________________ भादर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड ३४४ __पीता-मैं दो तीन यतियों के पास गया, किन्तु उन्होंने मुझे मैणा समझ कर रखने से इन्कार कर दिया । अतः मैं कृपाचन्द्रसूरि के पास बम्बई गया उस समय मेरा पिता भी मेरे साथ था। ___ मुनीम०-फिर उसको कुछ दिलाया या नहीं ? पीत०-मैने कृपाचन्द्रजी को कहा, पर उनके पास हजारों रुपये होने पर भी कुछ भी नहीं दिया और मुझे कहा कि तुम पीली चहर कर के मुर्शिदाबाद जाकर चतुर्मास करो तो तुम्हारे पिता का काम बन जायगा, बाद मेरे पास श्रा जाना । अतः मैं मुर्शिदाबाद में चतुर्मास कर ४५०) रुपये लाया जिसमें रु० ३००) मेरे बाप को दे दिया और १५०) रु० मैं अपने साथ ले आया हूँ, अतः मैं मुर्शिदाबाद रेलसे गया और वहाँ से रेल में ही आया हूँ। मुनीम-यहाँ आने का क्या कारण है ? . पीत०--कृपाचन्द्रसूरि का पत्र आया था कि तुम्हारे ढूंढ़ियों से निकला हुआ गयवरमुनि ओसियाँ में है; तुम ओसियाँ जाकर उसको समझा बुझा कर रेल में बैठा कर बम्बई ले आना, अतः मैं गयवरमुनिजी से मिलने के लिए आया हूँ, कहाँ है गयवरमुनिजी ? मुनीम०-ऊपर एक कमरे में विराजमान है। पीत०--क्या मैं ऊपर जा सकता हूँ ? मुनीम-ठहरो मैं पूछ के आता हूँ। मुनीमजी ने ऊपर जा कर मुनिश्री को पूछा कि माँगीलालजी आये हैं और आप से मिलना चाहते हैं, यदि आपकी आज्ञा हो तो वह ऊपर आने की इच्छा करता है ? मुनिश्री- ऊपर आने की मनाई नहीं है, खुशी से आवे । मुनीम-जा कर कह दिया । माँगीलालजी प्यासे थे अतः
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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