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मुनिम और पीतवस्त्र धारो साधु होगा, और इस प्रकार संवेगी साधु रेल में भी बैठते होंगे, यह कलङ्क नहीं तो और क्या है ?
पीतल-पीली चद्दर बिना रोटी भी कौन देता है ?
मुनीम०-क्या आपने केवल रोटी के लिए ही पीली चहर रखी है।
पीत०-इसको ठीक तो मैं भी नहीं समझता हूँ, किन्तु अब मैं शीघ्र ही संवेगी दीक्षा ले लूँगा।
मुनीम-तुम ढूंढ़ियों में किस टोले के थे ? पीत०-पूज्य श्रीलालजी की समुदाय में । मुनीम०-संसार में आपका कौन ग्राम और क्या जाति थी ?
पीत०-जयपुर राज्य में उलताणा मेरा ग्राम, था, और मैणा . मेरी जाति थी। . मुनीम०- आपने मैणा होकर दूँढ़ियों में दीक्षा कैसे ली ?
. पीत०-मेरा पिता गरीब था, मुझे स्वामि कर्मचन्दजी को सौंप अपना स्वार्थ सिद्ध कर चले गये । स्वामिजी ने मुझे दीक्षा दे कर एक कजोड़ीमलजी साधु का चेला बना दिया। उस समय मैं जैन-दीक्षा में कुछ भी नहीं समझता था पर अपनी सुविधा के लिये हँदियों के पास रह गया था।
मुनीम०-फिर ढूंढ़ियों की दीक्षा क्यों छोड़ी ?
पीत०-द्वंदिया मेरे से छूत-अछूत का परहेज रखते थे, आहार पानी मेरे साथ नहीं करते और कभी अपना लाया आहार मुझे देते तो ऊपर से डाल देते थे, इस अपमान के मारे मैं वहाँ से निकल गया।
मुनीम-अब किसके पास दीक्षा लेने का विचार है ?