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शास्त्रावलोकन
मैंने दीक्षा तो योगीराजश्री के पास ले ली है, अब रहना किसके पास इस विषय के लिये विचार करता हूँ। एक दफे मैं बड़े २ सब साधुत्रों से मिलना चाहता हूँ, फिर जहाँ मेरा दिल स्थिर हो जायगा, वहाँ ही ठहर जाऊँगा । आपके पास रहने को भी मैं ना नहीं करता हूँ। किंतु आप कुछ समय ठहर कर मुझे समागम के लिये समय दें। इस पर गुमानमुनिजी ने कहा कि मेरे को जैसलमेर जाना है, फिर गर्मी की मौसिम आ रही है, अतः मैं तो जैसलमेर जाता हूँ, मेरी पुस्तकों की सब पेटिय तुम्हारे पास रख जाता हूँ, तुम इनको पढ़ो और मैं मंगाऊं वहाँ भेज देना, या तुम्हारी इच्छा हो तो तुम भी मेरे पास आजाना, इतना कह कर मुनिजी फलौती की ओर विहार कर गये । __आपने गुमानमुनिजी के शास्त्रों की पेटियां खोली मुनिश्री ने उसमें देखा अधिकाँश पुस्तकें तपा-खरतरों के वादविवाद की हो थीं, कारण यह था कि गुमानमुनिजो पहिले तपागच्छ को क्रिया करते थे। तब खरतरों के खण्डन का साहित्य संग्रह किया था, बाद खरतरों की क्रिया करने लगे तो तपों के खण्डन का सामान एकत्रित किया । मुनिश्री को पढ़ने का सहज हो मौका मिल गया। पुस्तकें देखते देखते उपाध्याय धर्मसागरजी रचित कुमति कुहाला नामक ग्रन्थ भी आपके देखने में आया, यद्यपि वह ग्रंथ मूल प्राकृत और टीका संस्कृत में था, फिर भी आप प्राकृत से उसके मतलब को समझ सकते थे। ___ प्रस्तुत प्रन्थ में दश मत का खण्डन है, किन्तु सबसे अधिक जोर खरतर गच्छ के खण्डन पर दिया गया था, इनके अतिरिक्त और भी कई ग्रन्थ देखे और गुरु महाराज के वचनों को यदा