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________________ आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड ३४० मुनिजी को कहा कि आपके पात्रों को तो यहाँ रख दो और आप यह जोड़ ले लो ? मुनिजी ने कहा कि मैं अकेला साधु सात पात्रों की जोड़ को क्या करूं। चतुरमुनिजी ने हास्य में कहा कि अभी तक ढूंढिये के पात्रों से आपकी ममत्व नहीं हटी है, पर इन पात्रों में नो पानी का तो व्यवहार नहीं किया था न ? मुनिश्री ने अपने पास के पात्रे रख कर दो पात्रे और एक तृपणी चतुर मुनिजी से ले ली। ___ बाद पन्यासजी हर्ष मुनिजी महाराज ओसियाँ पधारे, आपकी भी,प्रकृति बड़ी ही शान्त औरांमिलनसार थी; आप इतने प्रतिष्ठित होने पर भी मान अहंकार यामोटाईपना तो आपको स्पर्श भी नहीं कर पाया था । आपका कहना तो था ही पर इतना आग्रह नहीं था कि तुम हमारे पास ही रहो, खैर-आप कई दिन विराज कर जोधपुर की ओर विहार कर दिया। मुनिश्री.आपश्री का उपकार मानते हुए बहुत दूर तक पहुँचाने को गये । ___थोड़े ही दिनों के पश्चात् प० गुमानमुनिनी भी पधारे आपश्री मोहनलालजी महाराज के शिष्यों में एक थे, पहिले आप तपा. गच्छ की क्रिया करते थे, पर बाद में यश मुनिजी खर-तरगच्छ के श्रावकों के धोखे में श्राकर खर-तरगच्छ की क्रिया करने लगे, तब से गुमानमुनिजी ने भी खरतरगच्छ की क्रिया स्वीकार कर ली थी। आपके पास शास्त्रों की कई पेटिये थी वे भी रेल द्वारा श्रोसियाँ आ गई थों। गुमान मुनिजी ने भी मुनिश्री को अपने पास रखने की बहुत कोशिश की, मुनिश्री किसी को भी ना नहीं कहते थे, कारण वे आप त्येक के भाव जानना चाहते थे, मुनिश्री ने उत्तर में कहा कि
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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