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________________ आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड ३३२ तोतेवाली आँख बदल कर कहा कि मेरे को तो कोसना की यात्रा करनी है। ___ मुनिश्री ने कहा, "गुरु महाराज, अभी तो आपने हमको दीक्षा दी है, अभी बड़ी दीक्षा देनी है, मैं बिल्कुल नया हूँ, आप मुझे अकेले को छोड़ कर कैसे पधारते हैं।" योगी०-शेर तो अकेले ही रहते हैं, भेड़ें साथ रहा करती हैं, यदि तुम्हारा यही आग्रह है तो पौष कृष्णा ३ को बड़ी दीक्षा देकर जाऊंगा। ___ मुनि०--यदि आपने विहार करने का निश्चय कर लिया है तो मैं भी आपकी सेवा में चलने को तैयार हूँ। ___योगी-यदि तुम मेरे साथ चलोगे तो यह बोडिंग रूपी जो पौदा लगाया है वह जलसिंचन बिना सूख जावेगा और करीकराई मेहनत मिट्टी में मिल जावेगो। तुम जानते हो कि इस बोडिंग से केवल विद्या प्रचार ही नहीं अपितु इस तीर्थ की भी प्रसिद्धि तथा उन्नति होगी। अतएव तुम यहीं ठहरो। मुनि-पर आप यह तो कह जाश्रो कि कौसना से वापिस ओसियां ही आऊँगा ? ___ योगी-इतना ज्ञानी तो मैं नहीं हूँ कि भविष्य का निश्चय कह सकू और यह बात क्षेत्र-स्पर्शना के हाथ है । बीच में ही भंडारी जी बोल उठे कि आप इतना श्राग्रह क्यों करते हैं मैं जैसे योगीराज को ले जाता हूँ वैसे साथ में आकर यहाँ पहुँचा जाऊँगा। आप इस बात की खात्री रखें। ___ बस, पौष कृष्ण ३ को मुनिजी को बढ़ी दीक्षा देकर उसी दिन विहार कर ग्राम के बाहर पादुका वाली पहाड़ी है वहां जाकर ठहर
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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