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आदर्श - ज्ञान द्वितीय खण्ड
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योगी - चाहता तो है, किन्तु बहुपरिवारी और बहुधनी होने के पश्चात् उसको पूछा जावे कि तुम कैसे सुखी हो, तो वह कहेगा कि मेरा जैसा दुखी शायद ही इस दुनिया में कोई होगा । कारण बहुपरिवार में कोई भला, कोई बुरा, कोई सुपुत्र, कोई कुपुत्र, कोई सुखी, कोई दुःखी, किसी का मरना, किसी का पैदा होना इत्यादि घटनायें नित्य घटित होती रहती हैं । अतः बहुपरिवार वाला हमेशा दुःखी ही रहता है । बहुधनी का भी यही हाल है, पहिले तो धन पैदा करने में कष्ट, दूसरे उसकी रक्षा करने का दुःख तीसरे चोर ले जावें या पानी में डूब जावे, उसका दुःख, या धन के पीछे पुत्रादि आपस में लड़ें-झगड़ें, आखिर उस धन को छोड़ परभव में जाते समय ममत्व के कारण मर कर सर्पादि होना आदि दुःख ही है ।
मुनि - इस विषय में आपका क्या कहना है ?
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योगी ० - तुम सुखी रहना चाहते हो तो जब तक कोई सुयोग्य शिष्य न मिले तब तक तुम अकेले ही रहना और पुस्तकादि किसी प्रकार की उपाधि का संग्रह न करना, यही मेरा कहना है । मुनि -जब आप शिष्य करने की मनाई करते हैं, तो फिर उपके गच्छ की क्रिया करने का आदेश क्यों देते हो, क्योंकि बिना शिष्य के उनको चलावेगा कौन ?
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योगी :- मैंने गच्छ है, बल्कि दूसरे गच्छ के कर आत्मकल्याण करने के और उपकेशगच्छ एक ऐसा गच्छ है कि इसकी और किसी ने दृष्टि कर क़लम नहीं उठाई है श्रपितु सब गच्छ वालों
चलाने का तुमको आदेश नहीं दिया फड़गों में न पड़ कर एकान्त में रह लिये मैंने तुम्हें आदेश दिया है ।
भी
क्रूर