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आदर्श - ज्ञान द्वितीय खण्ड
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[१] फल-फूल मूर्ति की श्रम पूजा है, कई स्थानों पर फूल मूर्ति पर चढ़ाने की प्रथा चल पड़ी है । यह कल्पना मात्र है । [२] मूर्ति पर आभूषण चैत्यवासियों से शुरु हुआ है और उनके राज्य में लिखे हुए ग्रंथों में इसका उल्लेख भी मिलता है । [३] जैन मन्दिर में रात्रि दीपक का शास्त्रीय विधान नहीं है । [४] मूर्ति के चक्षु का आग्रह श्वेताम्बर दिगम्बर का भेद होने के बाद हुआ है ।
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[५] देव द्रव्य शास्त्रीय विधान नहीं, किन्तु संघ की कल्पना है । छठा पत्र आचार्य विजयधर्मसूरिजी को उदयपुर लिखा गया था, जिसमें भी कई प्रश्न थे, किंतु उनका भी उत्तर संतोष जनक नहीं मिला।
उदयपुर में श्राचार्य विजयधर्मसूरिजी का चातुर्मास था । उस समय पूज्य श्रीलालजी महाराज का भी चातुर्मास वहीं था । श्रतः परस्पर खूब चर्चा चली ।
संवेगियों की ओर से १०८ प्रश्न ढूँढ़ियों से पूछे गये, जब कि ढूंढ़ियों की ओर से १५१ प्रश्न संवेगियों से पूछे गये थे । इन दोनों ओर से किये गये प्रश्न पुस्तकाकार में भी छप गये थे । संवेगियों की ओर से जो प्रश्न पूछे गये वे विद्वत्ता पूर्ण थे; किंतु ढूँढ़ियों की ओर से पूछे गये प्रश्न केवल थोकड़ों के बोलचाल से ही सम्बन्ध रखते थे । आचार्य विजयधर्मसूरि ने १५१ प्रश्नों वाली पुस्तक हमारे चरित्रनायकजी के पास निशान करके भेजी कि इन प्रश्नों का उत्तर लिख कर तुरत भिजवा दो। हमारे चरित्र - नायकजी को ४०० थोकड़े कण्ठस्थ थे, मिन्टों में ही उन प्रश्नों का उत्तर लिख कर भेज दिया गया ।