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________________ सं०प०मुनियों से प्रश्न पत्र [२] कितने रस विभाग का एक स्पर्द्ध बनता है ? [३] कितने स्पर्द्ध का एक कंडक बनता है ? [४] कितने कंडक से कर्म वर्गणा बनती है ? [५] कर्मों का निसर्ग किसको कहते हैं ? [६] ऋषभदेव भ० की दीक्षा चैत कृष्ण ८ को और वर्षी तप का पारण बैशाख शुक्ल ३ को हुआ तो फिर वर्षी तप कैसे हुआ ? इन महात्माओं का तो पत्र पहुँच जाने पर भी उत्तर तक ही नहीं मिला । जब रूबरू मिले तब मालुम हुआ कि पत्र आपको पहुँच गया था । पाँचवा पत्र मुनिश्री वल्लभविजयजी ( हाल के विजयवल्लभसूरि ) को लिखा गया, जिसमें यह प्रश्न थे: -- [१] तीर्थङ्करों की मूर्ति की फल फूल से पूजा की जाती है, वह अग्र पूजा है या अंगपूजा ? [२] तीर्थङ्करों की मूर्ति को मुकुट; कुण्डल, हार, कड़ा, कण्ठी धारण कराये जाते हैं, यह शास्त्रीय विधान है या आधुनिक चलाई हुई प्रवृति है ? ३११ [३] जैन मन्दिर में रात्रि दीपक या रोशनी की जाती है, इसका शास्त्रों में उल्लेख है या यह कल्पित क्रिया है ? [४] जैन मति ध्यानावस्था में विराजमान है। फिर उनके नेत्र खुले हुए क्यों हैं ? क्या ध्यान करने वाले इस प्रकार नेत्र खुला रख सकते हैं ? [५] देव द्रव्य कहा जाता है, यह शास्त्रीय विधान है या कल्पना है ? इन प्रश्नों का उत्तर शीघ्र ही आया । उत्तर में उन्होंने लिखा
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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