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सं० प. पत्र व्यवहार
जिसका उद्देश्य छाटे २ ट्रैक्ट छपा कर सर्वत्र ज्ञान प्रचार करना था।
और उसने आगे चलकर अपने उद्देश्य में कुछ सफलता भी प्राप्त की थी।
तीवरी के मन्दिरों में पूजारियों का भी कई प्रकार का जुल्म था मुनि श्री के उपदेश से उनको भी ठोक व्यवस्था हो गई। ४५ संवेग पक्षीय विद्धान मुनियों से पत्र व्यवहार
समाचारपत्रों में यह चर्चा जोरों से चल रही थी कि स्थानकवासी समाज से एक विद्वान् साधु गयवरचन्दजी अलग हो गये हैं, अभी उनके मुंहपत्ती बंधी हुई है और तीवरी चातुास है; चातुर्मास के बाद वह संवेगी होने वाले हैं। यह बात स्वाभाविक ही है कि विद्वान् शिष्य की सब आशा रखते हैं। अतः मुनिश्री के पास कई साधु एवं श्रावकों के पत्र आये, कई साधुओं की ओर से श्रावक भी आकर मिले, किंतु मुनिश्री ने सबको यही कहा कि अभी तो मैं योगीराज मुनिश्री रत्नविजयजी महाराज की सेवा में जाऊंगा फिर समय पा कर दूसरे साधुओं से मिलंगा अतःअभी तक तो कुछ भी निश्चित नहीं है । इसके अतिरिक्त
आपने संवेगपक्षीय विद्वान आचार्यों और मुनिवरों को पत्र द्वारा कई प्रश्न भी पूछे थे कारण कि इस सम्प्रदाय में कौन २ मुनि किस २ प्रकार के विद्वान् हैं ?
हमारे लोदाजी ने विद्वत्ता के विषय में सबसे अधिक प्रशंसा तो कृपाचन्द्रसूरि की ही को थी। इसलिए मुनिश्री ने सब से पहिला पत्र बम्बई कृपाचन्द्रसूरि को बड़े हो विनय के साथ लिखा था। उसमें निम्न लिखित प्रश्न भी पछे थे।