________________
आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
३००
पास आये और कहने लगे कि आपका कहना सोलह आना सत्य है, यह लोग जुल्म अवश्य करते हैं ।
इस बात का निर्णय करने के लिये किसी प्रसंग पाकर अचल. दासजी, और मोतीलालजी पूज्यजी के दर्शनार्थ ब्यावर गये और वहाँ पर प्रश्न किया कि ऋतुधर्म आई साध्वी क्या सूत्र बाँच सकती है ? - पूज्य:-सूत्र बाँचना तो दूर रहा, उसे तो सूत्र को स्पर्श भी नहीं करना चाहिये।
अचल०-क्या यह किसी सूत्र में कहा है ? पूज्य०-हाँ ठाणायाँग सूत्र में असजाई बतलाई है।
अचल-तीवरी में पानकुँवरजी ऋतुअवस्था में भी महा प्रभाविक श्री भगवती जी सूत्र बाँचती हैं। .
पूज्य०-मैं तो इसे ठीक नहीं समझता हूँ, यदि वे मानें तो मेरे नाम से आप कह देना कि इस प्रकार सूत्रों की आशातन कर ज्ञानवर्णीय कर्म न बाँधे।
जब अचलदासजी ने पूज्यजी से मूर्ति और मुंहपत्ती के विषय में प्रश्न किया तो पूज्यजी ने साफ कह दिया कि मति की निन्दा करने वाले महा मोहनीय कर्मोपार्जन करते हैं। कारण मूर्ति में स्थापनानिक्षेप के साथ नामनिक्षेप भी रहा हुआ है और चार नय वाले चारों निक्षेप को मानते हैं । अतः जैन शास्त्रों के जानकार न तो मूर्ति का निषेध करते हैं और न निन्दा ही करते हैं । हाँ मूर्तिपूजा में हिंसा होती है उसको हम धर्म नहीं मानते हैं पर सत्य बात तो यह है कि जब मूर्तिपूजकों ने मन्दिर की धूम-धाम बढ़ा दी, तब अपने समुदाय ने उसे बिलकुल हो छोड़ दिया। दूसरे