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________________ २९९ क्या ऋतुवती सूत्र बाच सकती पान० - काल में । अचल० - फिर आप उत्काल में क्यों बांचते हैं ? पान०- गुरू- परम्परा यह सुन अचलदासजी ने मुनिश्री के पास श्राकर सब हाल कह सुनाया । मुनिजी ने प्रश्न किया, कि कौन से गुरू की परम्परा ? अच० - गुरु लौंकाशाह की परम्परा । मुनि - लौंका शाह तो गृहस्थ था फिर उनको कितना ज्ञान था ? अचा०—साधारण ज्ञान होगा ? मुनि० - फिर गणधरों की परम्परा छोड़कर ऐसे अज्ञ गुरु की परम्परा बतलाना अज्ञान के सिवाय और क्या है । गणधरों की आज्ञा पालनी चाहिए या गृहस्थ गुरु की परम्परा ? अचल० - गणधरों की आज्ञा पालन करनी चाहिये । मुनि० - इसको आप स्वयं सोच लें। खैर, पानकुँवरजी स्त्री हैं, ऋतुधर्म भी आती होगी। फिर वह लगातार सूत्र कैसे बांचती है ? अचलदासजी पुनः पानकुंवरजी के पास गये और सवाल किया कि श्रारजियाँ ऋतुधर्म होने पर सूत्रों को छूती हैं या परहेज रखती हैं ? पान० - ऋतुधर्म तो त्रियों का स्वाभाविक धर्म है, इससे क्या होता है ? मैं स्वयं उस अवस्था में श्रीभगवती बांचती हूँ । अचल० - महाराज जुल्म करते हो, ऋतुधर्म का तो गृहस्थ लोग भी बड़ा भारी परहेज रखते हैं, फिर आप सूत्र कैसे बांचते हैं । पान० - आपको किसने भ्रम में डाल दिया है ? अचलदासजी चुप हो गये और वहां से उठ कर मुनिश्री के
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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