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आदर्श ज्ञान द्वितीय खण्ड
२९० आप गुरु हैं, यदि आपकी आज्ञा होगी तो मुनिजी को चातुर्मास यहाँ करना ही पड़ेगा।" ___ योगोगज-"ढूंढ़ियापने में वचन दिया गया तो क्या हुआ। .
आखिर वे भी तो साधु ही हैं । और पाँच महावत भी वे ही हैं। हाँ, श्रद्धा में जो फर्क था, वह निकल जाने से समुदायान्तर अवश्य हुआ है । पर इस सम्बन्ध में ऐसा कोई कारण नहीं है । अतः दिया हुआ वचन तो बराबर पूरा करना ही चाहिये । दूसरे मैं इनके गुणों में वृद्धि करना चाहता हूँ न कि क्षीणता। इन सब बातों को देखते हुए मुनिजी का यह चातुर्मास तोवरी में ही होगा।" फलोदी वाले योगराजजी वैद, मेघराजजी मुनैत, माणकलालजी कोचर, मुनिजी का चातुर्मास फलौदी करवाने की विनती करने वाले ही थे किन्तु योगीराज का यह कथन सुन वे स्वयं ही 'चुप रह गये। इतना उन्होंने अवश्य कहा कि अभी तो तीवरी वालों का भाग्य है, किंतु भविष्य का चातुर्मास आप दोनों महात्माओं का फलौदी होना चाहिये, हम अभी से ही विनती करते हैं अतः आप हमारी प्रार्थना को लक्ष में रखावें ।
योगी-क्षेत्र स्पर्शना एवं वर्तमान योग।
श्राषाढ़ कृष्णा प्रथमा को मुनिजी ने तीवरी के श्रावकों के साथ विहार किया। गुरु महाराज वहाँ ही बिराजे और फलौदी के श्रावक मुनिश्री की प्रशंसा करते हुए अपने नगर की ओर चल दिये।