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________________ २८५ उपकेश गच्छ के बारा में वैद्य मेहता उसी श्रेष्टि गोत्र की एक शाखा है ।उसी खानदान में मुनिजी ! आपका जन्म हुआ है । परिणाम स्यरूप ओसियां की पवित्र भूमि के साथ आपका घनीष्ट सम्बन्ध है । अब आप इस तीर्थ के काम को हाथ में लेकर इसका उद्धार करें । यह सुन कर मुनिजी ने नम्रता के साथ में कहा, तथास्तु । ___ इसके बाद योगीराज ने फिर कहा, "मुनिजी ! लो और सुनो ! आपके पूर्वजों को प्रतिबोध देने वाले श्राचार्य रत्नप्रभसरि का गच्छ उपकेश गच्छ है । यह गच्छ सब से जेष्ठ गच्छ माना जाता है। इस गच्छ में बड़े २ प्रभावशाली प्राचार्य हुए हैं जिन्होंने अपना अत्मकल्याण के साथ साथ शासन की भी सब तरह से काफी सेवायें की हैं । पर खेद है कि इस समय उपकेश गच्छ में यतियों के अलावा कोई भी त्यागी साधु नहीं है। मेरी राय है कि आप उपकेश गच्छ में क्रिया-उद्धार कर इस गच्छ को पुनः प्रकाश में लावें, और कृतघ्न बने हुए लोगों को कृतज्ञ बनावें।" "पूज्य योगिराज! आपके वचनों को मैं आशीर्वाद समझ कर शिरोधार्य करता हूँ। किन्तु मेरी ऐसी सामर्थ्य नहीं है कि मैं अकेला कुछ कर सकूँ।" योगिराज-"अरे ! अकेला तो सब कुछ कर सकता है । केवल साहस चाहिए। जितना काम तुम अकेले कर सकोगे, उतना काम बहुतों के साथ रह कर नहीं कर सकोगे। अतएव मेरी सलाह है कि जब तक कोई योग्य शिष्य न मिले, वहाँ तक आप अकेले ही रहो तथा आत्म-कल्याण के साथ यथासाध्य गच्छ का उद्धार करो।"
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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