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________________ आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड २६२ मुनिश्री के संसार पक्ष के भुड़ाजी भाग्यचंदजी डोसी जोधपुर में थे और आप थे भी मूर्तिपूजक श्रावक । सूर्योदय होते ही आपने क्रिया-काण्ड से निवृत्ति पाई । तत्पश्चात् प भाग्यचनजी की दुकान पर पधारे और अपना सारा वृत्तान्त सुनाने के बाद यह इच्छा प्रगट की कि चन्दनमलजी नागौरी छोटी सादड़ी वालों को तार द्वारा ऐसी सूचना दी जाय कि आप को वरचन्दजी ने याद किया है । इस बात को भाग्यंचन्दजी ने स्वीकार कर लिया । मुनिश्री जोधपुर से विहार कर महामन्दिर पधार गये । आपके पीछे जोधपुर में यह अफवाह सर्वत्र फैल गई कि प्रदेशी समुदाय का एक लिखा-पढ़ा विद्वान् साधू गयवरचन्दजी मूर्तिपूजा की श्रद्धा होने के कारण समुदाय से पृथक् हो कर महामन्दिर पवार गये हैं । इस बात को भाग्यचन्दजी के लघु भाई मिलाप - चन्दजी ने भी सुना और उन्होंने दूकान पर आकर भाग्यचन्दजी से सब हाल कहा । भाग्यचन्दजी ने मिलाप चन्दजी से कहा कि आज सुबह गयवर चन्दजी यहाँ पधारे थे और चन्दनमलजी नागौरी छोटी सादड़ी वालों को एक तार देने के लिये कह गये थे । अतः तुम जाओ एक तार दे आश्रो मिलापचन्दजी ने इसको स्वीकार तो कर लिया पर साथ यह भी कहा कि मैं पहले दीपचन्दजी साहब पारख से मिल लूँ तब बाद में तार दे दूंगा। तत्पश्चात् मिलापचन्दजी, दीपचन्दजी के पास पहुँचे और दीपचन्दजी सा० को सारा वृत्तान्त कह सुनाया । 1 दीपचन्दजी मिलपचन्दजी के साथ विचार करके महा मन्दिर गये और दोनों की मुनिश्री से एक घण्टे तक बात-चीत होती रही ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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