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३७ लूनकरणजी लोढ़ा का तीवरी में मिलाप
हमारे चरित्र नायकजी श्रद्धा एवं सचाई की धुन में अपने गुरूजी से पृथक् तो हो गये, परन्तु स्थान पर पाकर वे विचार में इतने तल्लीन हो गये कि उन्हें न तो क्रिया-काण्ड का ही ध्यान रहा और न गौचरी पानी का ही। इसका कारण यह था कि आप एक प्रतिष्ठित स्नानदानी घराने में से थे। दूसरी बात यह भी थी कि खास जोधपुर और आस-पास के प्रदेश में आपके बहुत से सम्बन्धी थे। और वे थे भी सब लोग स्थानकवासी अतः इस प्रकार अपने गुरूजो से पृथक् हो जाना निबन श्रात्मा के लिये लज्जाजनक भी था । अस्तु आपके मन में नाना प्रकार की तरंगें उठने लगों। - इस विचार में आप इतने व्यस्त हो गये कि शेष सारा दिन व्यतीत हा चला और जब दिन बहुत थोड़ा शेष रह गया वो आपने बिना भोजन किये ही प्रतिलेखन कर प्रतिक्रमण किया। तत्पश्चात् फिर आप इसी विचार में लग गये और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिये ? इसी समय आपको चन्दनमलजी नागौरी सादड़ी वालों का स्मरण हो आया । सादड़ी में चन्दनमलजी ने जब कि मुनिश्री का चतुर्मास सादोड़ी में था एक बार निवेदन किया था कि जब कभी आपको किसी भी कार्य की आवश्यकता पड़े तो मुझे याद फरमा ताकि मैं आपकी सर्व प्रकार से सेवा करने में भाग्यशाली बनूं । पर अब बात यह थी कि चन्दनमलजी को सूचना कौन दे ।