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जोधपुर में लिखित को चर्चा
शोभा०- तुम तो हिम्मत बहादुर हो, हमारे से तो इस प्रकार नहीं कहा जाता है ।
गयवर २ - शोभालालजी साहिब, मेरा कहना याद रखना, आज मेरी बारी है; कल आपके लिये भी यही दिन आवेगा और आपको इस चौरपली से अलग होना पड़ेगा । पूज्यजी ने आज आपको प्रसन्न कर लिया है, लेकिन इनकी गति बदलते देर नहीं लगती है ।
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इस जोरदार चर्चा को सुन कर मोड़ीरामजी महाराज श्राये । उन्होंने भी उस लिखित को पढ़ कर कहा कि साधुओं के लिए ऐसा लिखत करवाने की क्या आवश्यकता है ?
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हमने अभी तक साधुत्रों के लिए ऐसा लिखित नहीं देखा है, क्योंकि श्रद्धा और संयम का पालना तो आत्मा की साक्षी से ही हो सकता है । यदि पूज्यजी महाराज को ऐसा ही करना था, तो जब जावरा में गयवरचन्दजी ने पूज्यजी से प्रश्न पूछा था, उस समय रूबरू क्यों नहीं किया । गबवरचन्दजी तो मूर्ति-पूजा के विषय का पाठ आज भी बतला रहे हैं; उसका समाधान न कर इस प्रकार लिखत करवाना तो एक प्रकार की कमजोरी ही है । क्यों शोभालालजी, तुमने भी पाली में ऐसा ही लिखित के नीचे दस्तखत किये थे और अब गयवरचन्दजी से करवाने के लिए आये हो ?
शोभा० - मोडीरामजी महाराज, मैं क्या करूं, और इसमें मेरा कसूर भी तो क्या है ? जैसा पूज्यजी महाराज कहैं, वैसा तो करना ही पड़ता है ।
मोडी ० - शोभालालजी, यदि ऐसा लिखत पर किसी ने