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श्रावको मन्दिर जाने में
दोष है आप ही बताइये कि साधु मन्दिर में जावे तो उसके मूल गुण और उत्तर गुण में कौन सा दोष लगता है ? हमारे पूज्यजी ने टोंक में मन्दिर की धर्मशाला में चतुर्मास किया था और उनका रास्ता मन्दिर की तरफ से होने के कारण वे हमेशा मूर्ति के दर्शन करते थे । हमारे गुरु महाराज ने पूज्यजी महाराज की श्राज्ञा से गुजरात से आते समय मन्दिर मूर्तियों के लिये ही आबू तीर्थ पधार कर उनके दर्शन किए थे। गुजरात और काठिया वाड़ के साधु शत्रुजय गिरनार आदि की यात्रार्थ डूंगर पर जाते हैं, इत्यादि !
श्रावक-तो फिर हमको मनाई क्यों की जाती है कि तुम तीर्थ यात्रा या मन्दिर मत जाया करो।
मुनि०-किसने आपको मनाई की है ? जाना न जाना यह आपकी रुचि पर है; किन्तु मना करने वाले को अन्तराय का पाप अवश्य लगता है, क्योंकि मन्दिर में जाकर मूर्ति के दर्शन से भगवान याद आते हैं और वहां नवकार नमोत्थुणं एवं स्वध्याय स्तवन को बोलते हैं; अतः मना करने वालों को अन्तराय जरूर लगती है।
श्रापक०-आप तो पक्के मन्दिर मार्गी बन गये हैं न ?
मुनि-आप अपना जी चाहे सो समझो। ___ इतनी बात तो बाजार में हुई थी, बाद में नोहरे ( स्थानक) में आये, तो वहां बहुत से श्रावक जमा होकर मनमानी बातें कर रहे थे । मुनि श्री ने सोचा कि यहां अब गरीबी से काम नहीं । चलेगा; अतः इनको कुछ हाथ बतलाना चाहिए । आपने कहा