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शास्त्र के विषय में चर्चा
मन्दिर - मार्गियों के यहाँ से सूत्र मँगवा कर क्यों पढ़ते हो ? अपने भंडार में भी बहुत-से सूत्र हैं, आप वहाँ से मँगवा कर पढ़ा करें।
मुनि - वे सूत्र भी मन्दिर- मार्गियों के हो हैं। अपने लोगों तो केवल मन्दिर - मार्गियों के शास्त्रों की नकल ही कर ली है, और वे सब सूत्र मैंने पढ़ भी लिए हैं ।
श्रावक यदि मन्दिर - मार्गियों के शास्त्रों की ही नकल अपने लोगों ने की है, तो फिर दोनों शास्त्रों में इतना फर्क क्यों है ? मुनि - इसके लिये तो किसी विद्वान से पूछ कर निर्णय
करना ।
श्रावक
- आप जैसे विद्वान यहां प्रत्यक्ष विराजते हैं तो हम दूसरे किस विद्वान से निर्णय करने जावें ।
मुनि - मैं इतना विद्वान नहीं हूँ कि आपको समझा सकूँ । श्रावक - खैर, आपकी जैसी इच्छा, हमारा कर्तव्य तो निबेदन करने का था सो कर दिया । रतलाम में पूज्यजीम० ने भी सादड़ी के श्रावकों को खानगी तौर पर कह दिया था कि चतुर्मास के थोड़े ही दिन रह गये हैं, अतः साधुओं से ज्यादा छेड़छाड़ नहीं करना । अतएव श्रावक लोग साधारण तौर पर बात करके ही वहां से चले गये ।
मुनिजी की बीमारी के लिए बहुत इलाज किया, बिजली का प्रयोग भी किया गया, किन्तु आराम नहीं हुआ । आखिर नीमच से डाक्टर को बुलवा कर इन्जेकशन दिलवाये गये । इधर वेदना की अवधि भी पूर्ण हो आई थी: मंगसर मास के