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________________ २२१ मादडी में चन्दन० नागोरी बासी समाज ने गयवरचंदजी से चतुर्मास के लिए विनती की थी, तब आप चन्दनमलजी नागौरी से मिले थे। आपने कहा यदि मेग चतुर्मास यहां हो जाय तो श्राप मुझे शास्त्र पढ़ने के लिए देवेंगे या नहीं ? इस पर चन्दनमल जी ने टालमटोल की फिर मुनि श्री के कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि आप असूची (पेशाब ) के हाथ शास्त्रों के लगा देते हो, जिसे हम लोग बड़ी भारी अशातना समझते हैं । अतः हम आपको शास्त्र देना नहीं चाहते हैं । मुनि श्री-मेरी ऐसी श्रद्धा नहीं है, मैं सूत्रों को परम पूज्यनीय समझता हूँ। ___ इस प्रकार वार्तालाप करने से मालूम हो गया कि आपकी श्रद्धा मूर्तिपूजा की ओर झूकी हुई है, अतः चंदनमलजी ने कहा कि आपको जो शास्त्र चाहिएगा, मैं देता रहूँगा, यदि कोई शास्त्र मेरे पास न होगा, तो मैं बाहर से मैंगवाकर भी आपको दूंगा। श्राप प्रसन्नता के साथ चतुर्मास करें। ____ तब मुनिजी ने निश्चय किया था कि यदि यह चतुर्मास पज्यजी महाराज की सेवा में हो जावे तो अच्छा ही है, वरना चतुर्मास सादड़ी ही करना चाहिए क्योंकि यहाँ शास्त्रों का अच्छा संयोग है, तथा चंदनमलजी आदमी भी अच्छा है । दूसरी अनेक बातें जानने का भी यहाँ अच्छा सुभिता रहेगा । इस प्रकार अब मुनिजी के मनोरथ सफल हुए और आप चतुर्मास के लिए सादड़ी पचार गये। सादड़ी के श्रावकों ने आपका बड़े ही सम्मान पूर्वक स्वागत किया । व्याख्यान में सुख-विपाक सूत्र के बाद श्री राजप्रश्नी सूत्र प्रारम्भ हुआ । परिषद् का जमघट इतना होता था कि न्याति
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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