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________________ সাবা-মান २१६ तुम्हारे लिये मेरा चित्त बहुत प्रसन्न है । अच्छा तुम्हारे साथ मगनजीसाधु को भेज दूंगा, क्योंकि वह अच्छा व्यावश्ची साधु है, जिससे तुम्हें आराम रहेगा। ___पूज्यजी महाराज की यह चतुर्यता थी कि कर्मचंदजी, कनक. मलजी, शोभालालजी और गयवरचंदजी के पास किसी अच्छे साधु को नहीं रखते थे क्योंकि उनको विश्वास था कि यदि इनके पास अच्छे साधु को रखा गया, तो ये उसको भी समझा कर मूर्ति पूजा की श्रद्धा वाला बना देखेंगे । अतएव बिना जोखम वाले साधु ही इन चारों को दिया करते थे । पूज्यजी ने वहां से मगनजी साधु के पास जाकर कहा कि तुमको गयवरचंदजी के साथ कल सुबह ही विहार करना पड़ेगा; किंतु इस बात का ध्यान रखना कि तुम बिहार कर सीधे रास्ते ही सादड़ी जाओ यदि गयवरचंदजी नगरी होके जाने को कहें, तो तुम इन्कार कर देना; क्योंकि नगरी होकर जाने में दो तीन कोस का चक्कर पड़ता है। इस प्रकार व्यवस्था कर के पूज्यजी अपने स्थान पर पधार गये । सुबह प्रतिक्रमण के पश्चात् पूज्यजी महाराज ने साधुओं को आदेश दिया कि गयवरचंदजी की उपाधिका जल्दी प्रतिलेखन करवा दो । बस, प्रतिलेखन हुआ कि पूज्यजी महाराज थडिल भूमिका पधारने के आशय से गयवरचंदजी के साथ पधारे और मंगलीक सुनाकर बिहार करवा दिया। - पूज्यजी महाराज वापस मकान पर पधारे; इतने में उदयपुर के श्रावक पूज्यजी महाराज के दर्शनार्थ आ गये। उन्होंने सब साधुओं को वन्दन किया । पर गयवरचंदजी महाराज को नहीं देखा । साधुओं से पूछने पर मालूम हुआ कि गयवरचंदजी तो
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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