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________________ आदर्श-ज्ञान २१४ गयवर-पूज्यजी महाराज यह चतुर्मास तो मेरा आपके पास ही होना लाभकारी है । सेठजी अमरचन्दजी साहब ने भी बहुत कहा है कि यह चतुर्मास श्राप पूज्यजी महाराज के पास हो करावें । दूसरा, मुझे कई बातों का निर्णय भी तो करना है, अतः कृपा कर यह चतुर्मास तो आपके पास ही करावें । पूज्यजी -- किंतु छोटी सादड़ी वालों ने तुम्हारे लिए बहुत श्राग्रह से विनती की है; और नाथूलालजी अरणोदिया जैसे कराड़पति श्रावक तुम्हारे जाने पर अपने पक्के पक्षकार बन जावेंगे ? तुम जाओगे तो स्वधर्मियों के लिए कुछ द्रव्य भी खर्च करवा सकोगे । ऋषभदासजी और बिरधीचन्दजी कहते थे कि यदि आप किसी साधु का चतुर्मास नहीं कराओगे तो प्यारचंदजी सादड़ी चतुर्मास कर देवेंगे। अतः हम लोग तो इस वर्ष गययरचन्दजी महाराज का चतुर्मास ही करवाना चाहते हैं, इत्यादि । ऐसी हालत में सादड़ी अपने साधुओं का चतुर्मास अवश्य होना चाहिये, नहीं तो क्षेत्र हाथ मे चला जावेगा। गयवर०-आप किसी अन्य साधु को भेज देवें, मेरा तो निश्चय इस वर्ष आपकी सेवा में हो चतुर्मास करने का है। __ पूज्यजी-तुम ही बताओ कि मेरे पास ऐसा दूसरा कौन व्याख्यानिक साधु है, जि को मैं सादड़ी भेज सकू। अतः मेरी आज्ञा है कि इस वर्ष तुमको सादड़ी जाकर चतुर्मास करना ही पड़ेगा। ___ गयवरचन्दजी ने सोचा कि जब पूज्यजी महाराज का इस प्रकार आग्रह है तो उसका अनादर भी कैसे किया जा सकता है, और करने से हो भी क्या सकता है, जहां पूज्यजी महाराज की
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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