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________________ २०३ सामान क्रिया विष्ठय यही कारण है कि आज बड़े २ पूज्यों के चतुर्मास के क्षेत्र भी कम रह गये हैं, क्या यह हिंसा एवं आडम्बर नहीं है ? (३) मूर्तिपूजक जब मन्दिर बनाते थे, तब भी हम हिंसा २ कह कर निंदा करते थे। आज स्थानकवासी समाज में भी ग्राम ग्राम में अति सुन्दर स्थानक बन गये है । एक दो समुदाय भले ही उनमें नहीं ठहर सकता है, परन्तु यह कार्य समुदाय में होता तो जरूर है (४) धर्म या समाज के हित कोई उदार गृहस्थ द्रव्य खर्च करता, तो हम कहते थे कि यदि पैसे से ही धर्म होता हो, तो चक्रवर्ती राजा नरक में क्यों जाते । किन्तु आज तो द्रव्य-व्यय करने वालों को अच्छे २ विशेषणों से विभूषित किया जाता है । (५) मूर्त्ति पूजकों के साधुओं के आचार-व्यवहार के विषय में हम निंदा करते थे कि वे लोग शिथलाचारी हैं, परन्तु आज हमारी भी वही दशा हो रही है । इस प्रकार यदि देखा जाय तो सिवाय अपनी पकड़ी हुई बात के अतिरिक्त कोई भी विशेष फरक नजर नहीं आता है । क्या मूर्त्ति पूजक, क्या स्थानकवासी, क्या बड़े २ पूज्य और क्या छोटे साधारण साधु, सब परनिंदा तथा स्वपूजा की धुन घुसी हुई है । यही कारण है कि आज स्थानकवासी साधु फोटू उतरवा कर आप अपने को पुजाने की भरसक कोशिश करते हैं । स्थानकवासी तेरह साधुत्रों का ग्रूफ तो बारह आने में बाजारों में बिकते हैं । क्यों सेठजी, और भी पूछना कुछ वाकी है क्या ? सेठजी समझ गये कि महाराज का कहना सोलह आना सत्य है, और आपके लाग-लपेट भी नहीं है, जो कुछ कहते हैं,
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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