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मूगिता के विषय सूत्रार्थ सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपताणं तिकट्ठ बंदति णमंसति, बंदिता मंसिता"
त्यार विजयदेव चार हजार सामाजिक यावत् अन्य भी घणा बांणमित्र देवता अने देवियोंना परिवार थी सर्व ऋद्धिज्योति यावात् सबने साथ ज्यां सिद्धायतन छे, त्या आव्या अने सिद्धायतन ना पूर्वना दरवाजा थी प्रवेश किधो ज्या देव छान्दो छ त्या गया त्याँ जाई ने जिन प्रतिमा ने प्रणाम किधो पछे मौर पिच्छी लइने ते थी जिन प्रतिमानो प्रमार्जन किधो, पछे सुरभिगन्ध पाणी थी जिनप्रतिमानों न्हवण किंधो, पच्छी गौसीस चन्दन थी जिन तिमाना, अंग पर लेपन किधो, पच्छी सपेत निर्मल वस्त्र चढ़ाया पच्ही प्रधान गन्ध माल ना थी अर्चन किधो, पुष्प गन्ध माल्ला वर्ण चूर्ण श्राभरण चढ़ाया, पच्छ' पुष्पों नी माला चढ़ाई, पच्छी अच्छा रत्नोंना चावलों थी अष्ठ मंगलिक मांडिया पच्छे पाँच वर्णना फूलों ना ढगला किधा, पच्छी चन्द्रप्रभ वज वैडूय विमल दँड कांचन मणि रत्न भिंतिचित्र काल गुरु प्रधान कोदरु तीसक गन्ध युक्त धूप वट्टी गन्ध संयुक्त वैडूयमय कुडच्छा थी धूप दिधो जिनराज ने पच्छी १०८ विशुद्ध गाथा महाविस्तार अर्थयुक्त अपुन युक्ति से स्तवना किधी, पछी सात आठ पग पच्छा वली ने डावा दीचण उच्चो अने जीमणो ढीचण धरती ऊपर थापी पोताना मस्तक तीन बार धरती पा लगाड़ी ने भुजा ने प्रति साहरी पछी । बे हाथ जोड़ो मस्तक पर लगाढ़ी अम बोलता हुआ नमस्कार थावो अरिहन्तों ने भगवंतों ने यावत् 'सद्ध गति में प्राप्त थइ गया छे तेने श्रा प्रकारे वन्दन नमस्कार किधु, आ प्रकार बन्दन नमस्कार