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________________ आदश-ज्ञान १३६ कर तब बारीकी से देखा तो साधुओं को आश्चर्य होने लगा जब उन शान्तरस वाली मूर्तियों का दर्शन किया तो मानों आपके हृदय कमल में उनका चित्र हो अङ्कित हो गया। दूसरे दिन वहाँ से आप अचलगढ़ पधारे । वहाँ के दर्शन कर वापिस देलवाड़े आकर फिर दर्शन किए तथा बाद में अनादरा की नाल ( सोपान ) होकर सिरोही होते हुए आप सादड़ी पधार गये । ___ इधर जब ब्यावर में सुना गया कि पूज्य महाराज मारवाड़ में पधार रहे हैं, तो सब साधुओं को पूज्य महाराज के दर्शनों की उत्कण्ठा तो लग ही रही थी, उन्होंने डालचदजी स्वामी की आज्ञा लेकर विहार कर दिया। हमारे चरित्रनायकजी भी इनसाधुओं में ही थे । कोई साधु किसी रास्ते और कोई साधु किसी रास्ते होकर पूज्य महाराज के सामने जा रहे थे। गयवरचंदजी गुदोच तक तो साधुओं के साथ रहे। बाद में जब सुना कि गुरू महाराज सादड़ी में पधार गये हैं, तो आप एक साधु को लेकर क्रमशः विहार करते हुए सादड़ी जाकर गुरू महाराज से मिले गुजरात के दो चतुर्मासों की बातें हुई मोड़ीरामजी महाराज ने पूर्वोक्त आबू के मन्दिर का सब हाल कहा। तथा गुरू महाराज वगैरहः साधु पुनः पूज्यजी महाराज के सामने शिवगंज तक जाने के लिए बिहार कर सादड़ी से वाली आये । चतुर्दशी का सबके उपवास था, और वाली में प्रायः सब घर मूर्तिपूजकों के ही थे सुबह सब साधु पारणा और गोचरी का विचार ही कर रहे थे कि वहाँ पोमावा वाले सेठ नवलाजी का संघ, जो केसरियाजी की यात्रार्थ जा रहा था, आगया, साधुओं को देखकर संघपति बोला कि महाराज पधारो, भात पानी का लाभ दिलावें । मोड़ी.
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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