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आदर्श-ज्ञान
१२२ गयवर०-वाह, क्या आपको भी किसी संवेगड़ों का रंग लग गया है ?
मेघ०-नहीं महाराज, मेरे पास ऐसा साधन है कि मैं बासी रोटी में हिलने चलने वाले त्रसजीव आपको बतला सकता हूँ।
गयवर०-लो यह बासी रोटी मेरे पास मौजूद है, याद आप इसमें त्रस जीव बतला देवेंगे, तो मैं आज से बासी रोटी खाने का त्याग कर दूंगा।
मेघराजजी उठ का अन्दर से एक खुर्दबीन लाये और रोटी का टुकड़ा तोड़ कर उस खुर्दबीन से देखा तो जहाँ से रोटी का टुकड़ा तोड़ा, वहाँ बारीक-बारीक तन्तु से हिलते चलते जीव दीख पड़े । बस, फिर तो देर ही क्या थी, हमारे चरित्रनायक जी ने बासी रोटी का त्याग कर दिया तथा पात्र के अन्दर की बासी रोटियों को मेघराजजी के सामने रख कर बोसिरा दी। इसी प्रकार नये काजुओं में खुर्दबीन से ईडा देखा तो उसका भी त्याग कर दिया। ब्यावर में ठहरने से आपको और भी कई बातों का लाभ हुआ, जैसे कि:
मेघराजजी के पास विक्रम सम्वत् १५२८ का लिखा हुआ एक जूना पन्ना था, उसमें मूर्ति पूजकों ने लौंकाशाह से कई प्रश्न . पूछे थे जिसमें एक प्रश्न यह भी था कि तुम विद्वल मानते हो, यह कौनसे ३२ सूत्र के मूल पाठ में है ? इससे यह पाया गया कि विद्वल को लौकाशाह मानता था।
इस प्रकार रस चलित धोवण के अन्दर भी असंख्यों त्रस जीव उत्पन्न होने की सम्भावना को आप मानने लगे, जो आचा. रांग सूत्र तथा दशवैकालिक सूत्र के मूल पाठ में लिखा है ।