________________
आदर्श-ज्ञान
१२०
जल क्षारा है, तो उस में से लाये हुए जल के घड़े का पानी मीठा कैसे हो सकता है ? इस पर खूब विचार किया गया, यहां तक कि रात्रि में निद्रा तक भी नहीं आई। प्रातः प्रतिक्रमण और प्रतिलेखन कर थडिले भूमिका जाकर वापिस आये, तो सब से पहिले अापने आचारांग सूत्र निकाल कर देखा तो वहां टब्बाकर स्पष्ट लिखता है कि:
"प्रणम्य श्री जिनाधीश, श्री गुरुणा मनु ग्रहात् । लिखते सुखबोधार्थ माचारांगार्थ वार्तिकम् ॥१॥ सतरां शब्द शास्त्रेण तेषां बुद्धिर संस्कृता । व्यमोहो जायते तेषां दुर्गमें वृत्ति विस्तरे ॥ २ ॥ ततोवृतैः समुदत्य मुलभो लोक भाषण । धर्मलिप्सुपकारायादि मांगाऽर्थःपतन्यते ॥३॥
इस उल्लेख को पढ़ कर यह शंका हुई कि टीका से टब्बा बना है, फिर टीका को नहीं मान कर टब्बा ही मानना, इसमें कुछ न कुछ रहस्य अवश्य छिपा हुआ है, किन्तु यह बात किस को पूछी जावे। ___बाद में आपने व्याख्यान दिया, तथा आहार पानी से निवृत्ति पाकर मेघराजजी के पास गये और उनसे कहा कि रात्रि में जो आपने प्रश्न किया था उस प्रश्न ने तो हमको खूब झमेले में डाल दिया, मैंने अभी आचाराँग सूत्र निकाल कर देखा तो टब्बाकार साफ-साफ कहता है कि मैं मन्दबुद्धि वालों के उपकार के हेतु टोका से टब्बा बनाता हूँ, फिर टब्बा मानना और टीका को नहीं मानना, इसका क्या कारण होगा ?