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संवत् १९६९ का बीकानेर चातुर्मास ब्यावर आये, कारण ब्यावर में स्वामी डालचन्दजी वृद्धावस्था के कारण स्थिर वास करके रहे हुए थे।
रात्रि के समय जब सब लोग चले गये, तब श्रावक मेघराजजी ने हमारे चरित्रनायकजी के पास में आकर कुछ . प्रश्न किए।
. . मेघराजजी:-आप सूत्र पढ़ते हो ? गयवरचन्दजी:-हां। मेघराजजी-सूत्रों का अर्थ किस आधार से करते हो. ? गयवर-टब्बा से। मेघ०-टब्बा किस आधार से बना है ? गयवरः-टीका से टब्बा बना है । मेघ०-टीका को आप मानते हैं ? गयवर०-नहीं। मेघ०-इसका क्या कारण है ?
गयवर०-परम्परा से टीका नहीं मानी जाती है, टीका तो संवेगी लोग मानते हैं। __ मेघ०-टीका से टब्बा बनना तो आप स्वीकार करते हो, फिर टब्बा मानना और टीका नहीं मानना, इसके लिए आप समय मिलने पर जरा विचार करना । . इतना कह कर श्रावक मेघराजजी तो चले गये ।
उन के जाने के पश्वात् हमारे चरित्रनायकजी विचार में पड़ गये, निद्रा देवी ने भी किनारा ले लिया। आप विचारने लगे कि टीका से टब्बा बना है, फिर टब्बा को मानना और टीका को न मानना, यह तो एक प्रकार का अन्याय है । जिस समुद्र का :