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________________ ११३ सं० १९६७ का चातुर्मास काल आनंदपुर वृद्ध लोगों को बहकाया, और उन्होंने साधुओं को चतुर्मास के लिए कहा। परन्तु साधुओं ने कह दिया कि दोनों समय हमारा ही व्याख्यान हो तो हम चतुर्मास करें। किन्तु पहिले मुनिश्री की विनती करने वालों ने वहाँ स्पष्ट कह दिया कि गयवरचन्दजी महाराज को भी हमने विनती करके रखा है, यदि आप दोनों समय व्याख्यान बांचोगे तो वहां भी दोनों वक्त व्याख्यान बँचता रहेगा और जिसकी जैसी इच्छा होगी वह वहीं जा कर व्याख्यान सुनेगा। केसरीमलजी ने इसको मॅजूर नहीं किया। अन्त में यह तय हुआ कि सुबह केसरीमलजी व्याख्यान देवें और दोपहर को गयवरचन्दजी महाराज। . इस पर केसरीमलजी ने चतुर्मास करना स्वीकार कर लिया कुछ दिन तो पूर्वोक्त नियम का ठीक-ठीक पालन होता रहा, किन्तु बाद में केसरीमलजी ने दोपहर का व्याख्यान भी शुरु कर दिया। इधर हमारे चरित्रनायकजी ने भी सुबह, दोपहर, तथा रात्रि एवं तीनसमय व्याख्यान देना प्रारम्भ कर दिया। चन्द व्य. कियों को छोड़, जैन, जैनेतर सब हमारे चरित्रनायकजी के व्याख्यान में आने लग गये; इसका कारण यह था कि आप की व्याख्यान शैली मधर, रोचक और प्रभावशाली थी; दूसरे, आपका उत्कृष्ट आचार-व्यवहार और तपश्चर्या ने भी जनता पर काफी प्रभाव डाल दिया था। इस चतुर्मास में भी आपने एक अठाई, दो पचोल और फुटकर तपस्या की थी। आश्विन मास में यहां भी आपके नेत्रों की तकलीफ हो गई थी। केसरीमलजी ने कहलाया कि गयवरचंदजी कहें तो हम आहार पानी ला देंगे, किन्तु आपने इन्कार
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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